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________________ : ६३ : उदय : धर्म-दिवाकर का श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ चौवनवां चातुर्मास (सं० २००६): रतलाम गुरुदेव जब रतलाम पधार रहे थे तो रतलाम से २ मील दूर तीनों सम्प्रदायों के तीन-चार सौ नर-नारी सेवा में उपस्थित हए। वार्तालाप किया। बड़ा ही मधुर वातावरण रहा। हजारों नर-नारियों के जयघोष के साथ गुरुदेव ने रतलाम में प्रवेश कियो। जन दिवाकरजी महाराज के प्रवचन नीमच चौक में होने लगे । श्रोताओं की संख्या बढ़ने लगी। पंडाल पहले से ही बहुत बड़ा था। लेकिन उपस्थिति जब नगर के छह हजार और बाहर के पांच हजार-इस तरह लगभग १०-११ हजार श्रोताओं की होने लगी तो पंडाल और भी बढ़ाना पड़ा। प्रवचनों में हिन्दू, मुसलमान, बोहरे, जैन-जैनेतर एवं अधिकारीगण सभी समान रूप से भाग लेते और वाणी का लाभ उठाते । पूज्यश्री जवाहरलालजी महाराज के सम्प्रदाय के श्रावक-श्राविका भी प्रवचन लाभ लेते थे। इस विशाल उपस्थिति को देखकर श्री सोमचन्द तुलसीभाई को कहना पड़ा कि-'रतलाम में प्रवचनों में इतनी उपस्थिति मेरे देखने में नहीं आई। 'निग्रंथ प्रवचन सप्ताह मनाया गया । तपस्वी श्री माणकचन्दजी महाराज ने ३८ दिन की तपस्या की। इसके उपलक्ष में कसाईखाने बन्द रहे, गरीबों को मिष्ठान्न खिलाया गया और विभिन्न संस्थाओं को दान दिया गया। तपस्वी श्री बसन्तीलालजी महाराज ने पंचोले-पंचोले पारणे किये। आसोज सुदि में जैन दिवाकरजी महाराज की सेवा में ब्यावर, उदयपुर, मंदसौर, जावरा, इन्दौर आदि अनेक स्थानों के मुख्य-मुख्य व्यक्ति उपस्थित हुए थे। उस समय महाराजश्री के मस्तिष्क में एक विचार आया कि-'पूज्यश्री हुक्मीचन्दजी महाराज का सम्प्रदाय कई वर्षों से दो भागों में विभक्त है। उनमें ऐक्य किस प्रकार हो सकता है ?' आपने कुछ प्रमुख लोगों के सामने अपने विचार व्यक्त किये। उस समय पूज्यश्री गणेशीलालजी महाराज जयपुर में विराजमान थे। श्री देवराजजी सुराणा ब्यावर, श्री बापूलालजी बोथरा, श्री सुजानमलजी मेहता, जावरा; श्री सौभागमलजी कोचेट्टा, जावरा; श्री चाँदमलजी मारू, श्री चांदमलजी मुरडिया, मन्दसौर; -ये छह व्यक्ति जयपुर पहुंचे। वहाँ करीब ५ दिन ठहरे। पूज्यश्री गणेशीलालजी महाराज को श्री जैन दिवाकरजी महाराज का सन्देश दिया। उस पर विचार करके पूज्यश्री गणेशीलाल जी महाराज ने सात बातें एकीकरण के सम्बन्ध में लिखवाईं। उनमें एक बात यह थी कि एक आचार्य होना चाहिए। जैन दिवाकरजी महाराज ने सभी बातों के साथ एक आचार्य की बात भी स्वीकार कर ली। किन्तु पूज्यश्री गणेशीलालजी महाराज को आचार्य बनाने की सहमति देकर अपनी उदारता भी प्रदर्शित की । लेकिन साथ ही साथ यह सुझाव भी दिया कि-'क्योंकि अनेक वर्षों से अलग रहे हैं इसलिए आचार्यश्री के सम्मिलित संघ संचालन में पूज्यश्री मन्नालालजी महाराज के सम्प्रदाय के मुख्य मुनिराज की सम्मति अवश्य ले ली जाय।' यह सन्देश लेकर श्री चंपालालजी बंब जयपुर पहुँचे । परन्तु पूज्यश्री गणेशीलालजी महाराज ने इस सुझाव को स्वीकार नहीं किया, और चातुर्मास बाद अलवर की ओर विहार कर दिया। कार्तिक शुक्ला ६ को जैन कान्फ्रेंस का एक डेपूटेशन (शिष्टमंडल) अध्यक्ष श्री कुन्दनमल जी फिरोदिया के नेतृत्व में आया। महामंत्री श्री चीमनलाल पोपटलाल शाह, संयुक्त मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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