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________________ श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ (५) किसी सम्प्रदाय की तरफ से अन्य सम्प्रदाय के सम्बन्ध में निन्दात्मक लेखन नहीं होना चाहिए । ( ६ ) सम्प्रदाय मंडल या समितियाँ मिटा दी जायें । (७) कोई साधु-साध्वी अपने सम्प्रदाय को छोड़कर अन्य सम्प्रदाय में जाना चाहे तो इनके पूज्य प्रवर्तक या गुरु की स्वीकृति बिना न लिया जाय । यह सात बातें गुरुदेव ने लिखवाकर अपने सम्प्रदाय के सभी मुनियों की ओर से इनके लिए सर्वप्रथम स्वीकृति भी फरमाई । (१) जैन दिवाकर मुनिश्री चौथमलजी महाराज ने उपरोक्त बातों की स्वीकृति फरमाई । -द: देवराज सुराना मिती पौष वदी १० सं० २००५ ता० २५-१२-४८, पाली तारीख २५ के बाद ही अन्य मुनियों की स्वीकृतियाँ प्राप्त हुई हैं । TE से निकलने वाले जैन प्रकाश के ता० ८-१२-४६ वर्ष ३७, अंक ७ से पता चलता है कि १२ मास के प्रयास के बाद भी स्वीकृतियाँ होना बाकी थी। संघ - एकता के लिए सर्वप्रथम कदम उठाने वालों में श्री जैन दिवाकरजी महाराज अग्रणी थे । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ε२ : तिरेपनवां चातुर्मास (सं० २००५ ) : जोधपुर सं० २००५ का आपश्री का चातुर्मास जोधपुर में हुआ । आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने वेश्यावृत्ति आदि व्यसनों का त्याग कर दिया। इस चातुर्मास में तपस्वी श्री नेमीचन्दजी महाराज ने ४३ दिन की तपस्या की । पूर्ति के दिन पुस्तकों और श्रीफलों की प्रभावना की गई । बहुत त्याग - प्रत्याख्यान हुए । जोधपुर में गुरुदेव के खास भक्तजनों की एक मीटिंग हुई। उसमें स्थानकवासी साधुओं में संगठन एवं प्रेम बढ़ाने के लिए और एक समाचारी बनाकर संगठन को सुदृढ़ करने के प्रस्ताव पास किये गए । जोधपुर चातुर्मास पूर्ण करके जैन दिवाकरजी महाराज ने अनेक ग्रामों में भ्रमण करते हुए चारभुजाजी की ओर प्रस्थान किया । रतलाम निवासियों की उत्कट इच्छा आपका चातुर्मास रतलाम में कराने की थी, परन्तु वहाँ ( रतलाम में ) के लोग तीन संघों में विभक्त थे - ( १ ) पूज्यश्री धर्मदासजी महाराज के अनुयायी, ( २ ) पूज्य श्री जवाहरलालजी महाराज के अनुयायी, और (३) पूज्यश्री मन्नालालजी महाराज के अनुयायी । अतः कान्फ्रेन्स के प्रतिनिधि श्री खीमचन्द भाई वोरा, श्री दुर्लभजी भाई खेतानी आदि ने तीनों अनुयायियों में से चुन कर एक कमेटी बनाई। इस कमेटी ने सर्वानुमति से जैन दिवाकरजी महाराज से रतलाम चातुर्मास की प्रार्थना की। विरोध में समन्वय का मार्ग प्रस्तुत किया । प्रमुख रूप से इस संप के समन्वय की कड़ी को जोड़ने में श्री नाथूलालजी सेठिया, श्री लखमीचन्दजी मुणत और श्री बापूलालजी बोथरा ने अपना बहुत योगदान दिया । श्री बापूलालजी बोथरा, श्री माँगीलालजी बोथरा, सेठ चांदमलजी चाणोदिया के अथक प्रयासों से २१ वर्षों के बाद जोधपुर में रतलाम स्पर्शने की स्वीकृति मिली थी और चैत्र कृष्णा ४, सं० २००५ को चातुर्मास की स्वीकृति मिली । इस स्वीकृति से रतलाम श्रीसंघ में अपार हर्ष छा गया। बाहर गाँव के धर्म-प्रेमियों को भी तार और पत्रों द्वारा समाचार दे दिया गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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