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________________ ॥ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।। एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ६० : लम्बा जुलूस था। एम० टी० क्लोथ मार्केट के वाडेंड वेअर हाउस में गुरुदेवश्री का चातुर्मास हुआ । २७ संत एवं २७ ही महासतीजी महाराज के विराजने से बहुत ही धर्मध्यान हुआ। पर्युषण पर्व में बाहर के करीब ढाई हजार बन्धु आए थे । व्याख्यान में ६ हजार से अधिक की उपस्थिति हो जाती थी । तपस्याओं की झड़ी लग गई । एक दिन से लगाकर २१ दिन तक की तपस्याएँ हुई। अनेक पचरंगिए हुई। घोरतपस्वी श्री नेमीचन्दजी महाराज ने ४८ दिन की, घोर तपस्वी श्री सागरमलजी महाराज ने २८ दिन की एवं घोर तपस्वी श्री माणकचन्दजी महाराज ने ३६ दिन की तपस्याएं की। इन तपस्याओं की पूर्णाहुति ममारोहपूर्वक मनाई गई। एक हजार गरीबों को भोजन दिया गया। श्री संगनमलजी भण्डारी की प्रेरणा से श्री चतुर्थ जैन वद्धाश्रम को दस हजार रुपये के वचन मिले तथा समाज के अन्य दानवीर श्रीमंतों एवं सद्गृहस्थों ने मुक्तहस्त से २०००० रुपये का दान देकर इस संस्था की जड़ें मजबूत कीं। अन्य संस्थाओं को भी दान दिया गया। 'निर्ग्रन्थ प्रवचन सप्ताह मनाया गया। लोकाशाह जयन्ती आपके सानिध्य में बड़ी धूमधाम से मनाई गई। राय बहादुर सेठ कन्हैयालालजी भण्डारी व श्री नन्दलालजी मारू ने भी भाषण किया । महिला सम्मेलन एवं वाद-विवाद प्रतियोगिताएं भी हुई। इस चातुर्मास में सेठ श्री भंवरलालजी धाकड़ ने भी सेवा का खूब लाभ लिया। एक बार एम. टी. क्लोथ मार्केट के प्रांगण में जैन दिवाकरजी महाराज का सार्वजनिक प्रवचन हो रहा था । इन्दौर के बड़े-बड़े लोग सम्मिलित थे। सर सेठ हुकमचन्दजी भी आए थे। सेठजी ने गुरुदेव को वन्दन किया, तो आपने कहा-'दया पालो सेठजी ! लेकिन दूसरे ही क्षण गुरुदेव ने स्पष्टीकरण करते हुए कहा-'सेठजी को दया पालो कहा है तो आप लोग यह न समझें कि इनसे हमें कुछ स्वार्थ है । साधुओं को इनसे किसी प्रकार की कामना नहीं है। किन्तु ये धर्मप्रिय व्यक्ति है। इनके पास कोरा धन ही नहीं है, धन के साथ धर्म भी है। इनका धर्म-प्रेम देखकर ही हमने इन्हें सेठजी कहा है । अत: 'गुणिषु प्रमोदं' के नाते कहा है।' यह थी आपकी वाणी की जागरूकता ! इक्यावनवाँ चातुर्मास (सं० २००३) : घाणेराव सावड़ी संवत २००३ का आपश्री का चातुर्मास घाणेराव सादड़ी में हआ। प्रवचनों में वहाँ के ठाकुर साहब भी उपस्थित होते थे। बावनवाँ चातुर्मास (सं० २००४) : ब्यावर जैन दिवाकरजी महाराज का सं० २००४ का वर्षावास ब्यावर में हुआ । खुब धर्म-प्रभावना हई। यहाँ आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर खटीक जाति का एक किशोर नाथलाल जीवहिंसा से विरत हो गया। इस चातुर्मास में भारत विभाजन के कारण हजारों जैन परिवार पाकिस्तान से भारत आये। उनकी दशा बड़ी हृदयद्रावक थी। आपश्री के उपदेशों से विपद्मस्त जैन बन्धुओं की सहायता की गई। ब्यावर चातुर्मास पूर्ण करने के बाद अनेक स्थलों को पवित्र करते हुए आप जूनिया पधारे। जनिया महाराज ने भावभरा स्वागत किया, प्रवचन सुने और त्याग किये। सरवाड़ पधारने पर एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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