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________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ८८ : रूपावतजी ने वही किया। गुरुदेव के मना करते-करते भी अंगुष्ठोदक ले ही लिया । इस जल को दो-चार बार ही पिलाने से बालक सर्वथा नीरोग हो गया। जो रोग दुनिया-भर की औषधियों और उपचारों से ठीक न हो सका; वह महाराजश्री के अंगुष्ठोदक से मिट गया। शांतिलाल आज मी मनासा में सकुशल हैं। ' मन्दसौर में ३३ वर्षों के बाद चातुर्मास हो रहा था। विशाल मण्डप में धारावाही प्रवचन होने लगे। राजकर्मचारी, बोहरे और मुसलमान भाई भी व्याख्यान श्रवण का लाभ लेने लगे। यहाँ तपस्वी मेघराजजी महाराज ने ३१ दिन की तपस्या की। महासतियाँ जी एवं भाई-बहनों ने भी तपोव्रत किया। चातुर्मास बाद महाराज साहब प्रतापगढ़ पधारे। वहाँ जितने भी राज्याधिकारी थे, सभी व्याख्यान का लाभ लेते थे। प्रतापगढ़ दरबार एवं राजमाता ने दो व्याख्यान राजमहल में करवाए। प्रभावना भी दी । महावीर जयन्ती के दिन अगता रखने का वचन दिया। दशहरे पर होने वाले पाड़े का बलिदान बन्द कर दिया। महाराजश्री के विहार के दिन कसाईखाना बन्द रखा। प्रतापगढ़ से आपश्री धरियावद पधारे। रावजी साहब पहाड़ी रास्ते में भी साथ रहे । चार मील पैदल चले । गुरुदेव की तबियत वहाँ खराब हो गई। अड़तालीसवाँ चातुर्मास (सं० २०००) : चित्तौड़ सं० २००० का चातुर्मास चित्तौड़ में हुआ। अपने प्रवचनों द्वारा आपश्री ने वृद्धों, अपाहिजों की सेवा करने की प्रेरणा दी। फलस्वरूप 'चतुर्थ वृद्धाश्रम' की स्थापना हुई, जहाँ वृद्ध लोगों के भरण-पोषण और आध्यात्मिक साधना हेतु समुचित साधन जुटाए गए। चित्तौड़ में आपश्री ने १७ मुनियों के साथ चातुर्मास किया। पधारने के दिन महाराणा साहब ने अगता पलवाया। तपस्वी नेमिचन्दजी महाराज ने ५० दिन की और तपस्वी वक्ता मलजी महाराज ने ५७ दिन की तपश्चर्या की। दोनों तपस्वियों के पारणे आनन्द से हो गए परन्तु पारणे के दिन तपस्वी वक्तावरमलजी महाराज का स्वर्गवास हो गया । १२ हजार जनता की उपस्थिति में चन्दन और हजारों नारियलों के साथ संस्कार हुआ। इस वर्ष नदियों में बाढ़ आने से बाढ़ पीड़ितों के लिए काफी आर्थिक सहायता दी गई। उनपचासवा चातुर्मास (स० २००१) : उज्जैन सं० २००१ में महावीर जयन्ती का अवसर आ गया। जैन दिवाकरजी महाराज ४० सन्तों सहित वहां विराजमान थे ही। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के व्याख्यान वाचस्पति श्री विद्याविनयजी महाराज भी विराज रहे थे । आपकी उदारता से दोनों संतों के प्रवचन एक ही मंच से हो रहे थे । वहाँ मूर्तिपूजक संघ का उपधान तप भी चल रहा था । बाहर से १०-१५ हजार नरनारी प्रवचन लाभ लेने आए हुए थे। महावीर जयन्ती उत्सव सभी लोगों ने मिलकर आनन्द पूर्वक मनाया। उज्जैन में यह प्रथम अवसर था जब श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और दिगम्बर बन्धुओं ने मिलकर महावीर जयन्ती उत्सव मनाया। जैन बोर्डिंग के लिए १५००० रुपये का चन्दा भी हुआ । भवन; स्थानक बना गुरुदेवश्री की वाणी में एक आश्चर्यजनक शक्ति थी कि जब भी आप किसी को कोई उपदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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