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________________ [ ५३ ] मोटे बहुत से दादा साहब के प्राचीन चित्र पाए जाते हैं । लखनऊ में भी दादा साहब के चित्र देखे स्मरण है । प्राचीन चित्रकला के चित्रों का परिचय देने के पश्चात् उसी के अनुकरण में वर्तमान के यशस्वी और भारत विश्रुत चित्रकार श्री इन्द्रदूगड़ का बनाया हुआ विशाल और कला - पूर्ण चित्र कलकत्ता- दादावाड़ी में लगा हुआ है जिसमें बड़े दादासाहब के जीवनवृत्त से सम्बन्धित कई भाव चित्रित हैं | व्याख्यान वाचस्पति मुनि श्री कान्तिसागरजी ने पहले भांदकजी में मित्ति चित्र बनवाये थे और तत्पश्चात् 'श्री जिन गुरु-गुण-सचित्र पुष्पमाला' पुस्तक में इकरंगे और तिरंगे चित्रों का भी प्रकाशन करवाया जिसमें चारों दादा साहब के २४ तिरंगे एवं २ काष्टफलक चित्र प्रकाशित हुए हैं। विर्य हेमेन्द्र नागरजी के पत्रानुसार सूरत में श्री जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार में कतिपय चित्र लगे हैं जिनमें १७ × १७ इंच के ( १ ) क्षमाकल्याणोपाय व मुन्नालाल जोहरी व (२) जिनलाभसूरिजी का चित्र दो ढाई सौ वर्ष प्राचीन हैं । एक बड़े चित्र में बीच में जिनचन्द्रसूरिजी दाहिनी ओर अभयदेवसूरिजी बांई तरफ जिनवल्लभसूरिजी । दूसरे में वर्द्धमानसूरिजी ( मध्य में ) जिनेश्वरसूरिजी ( दाहिने) और बुद्धिसागरसूरिजी ( बांयें ) हैं । एक चित्र मणिधारीजी का है जिसमें बादशाह सामने खड़ा दिखाया गया है । चौथे दादा श्री जिनचन्द्रसूरिजी के चित्र में अकबर मिलन का भाव चित्रित है । ये चित्र ५५-६० वर्ष पुराने हैं और श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के उपदेश से बने हुए हैं । और भी दादासाहब व दूसरे खरतरगच्छाचार्यों के चित्र उपाश्रयों आदि में पर्याप्त पाये जाते हैं जिन्हें शोधपूर्वक प्रकाश में लाना चाहिए । Jain Education International 1 मुनि जिनविजयजी के प्रकाशित जिनदत्तसूरिजी के चित्रमय काष्ठफलक के तीन ब्लॉक 'भारतीय विद्या'- निबन्ध संग्रह में प्रकाशित हुए हैं । इनमें से जिनदत्तसूरि सम्बन्धी दो यहां प्रकाशित कर रहे हैं । इनका विवरण मुनिजी ने इस प्रकार दिया है : इस पट्टिका के बांये और दाहिने भाग में चित्रित दृश्यों के दो खंड हैं । इन दोनों खण्डों में जिनदत्तसूरिजी की व्याख्यान-सभा का आलेखन है । इसके ऊपर वाले चित्र - खण्ड में मध्य में श्री जिनदत्तसूरि विराजमान हैं और उनके सन्मुख पं० जिनरक्षित बैठे हैं। जिनरक्षित के पीछे दो श्रावक हैं एवं श्रीजिनदत्तसूरिजी के पृष्ठ भाग में एक श्रावक और दो श्राविकाए बैठी हैं । नीचे वाले चित्रखण्ड में मध्य में श्री जिनदत्तसूरि और उनके सम्मुख श्रीगुणसमुद्राचार्य और उनके पीछे एक मुनि और एक श्रावक बैठा है । जिनदत्तसूरि के पृष्ठ भाग में दो श्रावक बैठे हैं । सूरिजी के सामने स्थापनाचार्य रखे हैं, जिनपर 'महावीर ' अक्षर लिखे हुए हैं । इस चित्रावली से विदित होता है कि यह सचित्र काष्ठपट्टिका श्रीजिनदत्तसूरिजी के निजी संग्रह की किसी ताड़पत्रीय पुस्तक की है । किसी भक्त श्रावक ने उन्हें किसी बड़े और महत्वपूर्ण ग्रन्थ को लिखाकर भेंट किया था, जिसके ऊपर की यह एक सुन्दर चित्रालंकृत पटड़ी है । संभव है कि इसमें आलेखित स्त्रीपुरुष इस ग्रन्थ को भेंट करने वाले श्रावक परिवार के ही मुख्य व्यक्ति हो । जिनालय में सूरिजी ने एक भव्य महावीर प्रभु प्रतिमा की मारवाड़ के विक्रमपुर के श्रेष्ठी देवधर निर्माणित प्रतिष्ठा की थी। संभव है कि इस चित्रपट्टिका में इसी प्रतिष्ठा प्रसंगका आलेखन हो । क्योंकि सूरिजी के समक्ष स्थित स्थापनाचार्य पर “महावीर” नाम लिखा हुआ है । कदाचित् इसी देवधर ने इस पट्टिका के साथ वाले ग्रन्थ को लिखा कर सूरिजी को समर्पित किया हो और इस पट्टिका में उक्त प्रसंगके स्मारक स्वरूप चित्राङ्कन किया गया हो । जैन सम्प्रदाय में ऐसे प्रसंगों के निमित्त पुस्तकादि लेखन व चित्रपट्टिकादि के आलेखन की प्रवृत्ति अति प्राचीन काल से चली आ रही है । हम इसे विक्रम की बारहवीं शती के अंतिम और तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ के चित्रालेखन की प्रतीक, निश्चित रूपसे मान सकते हैं, इतनी प्राचीन अन्य कोई सुन्दर चित्राकृति अद्यापि हमें उपलब्ध नहीं है ! For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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