SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३० । सं० १३७९ में मार्गशीर्ष कृष्ण ५ को अनेक नगरों के महद्धिक श्रावकों की उपस्थिति में सेठ तेजपाल ने शांतिनाथ विधि में जलयात्रा सहित प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया। इसी दिन शत्रुंजय महातीर्थ पर खरतरवसही में मानतुंगप्रासाद की नींव डाली गयी । श्रीजिनकुशलसूरिजी शिला, रत्न और धातुमय १५० प्रतिमाएँ स्वकीय मूल समवशरणद्वय, जिनचन्द्रसूरि, जिनरत्नसूरि आदि के साथ नाना अधिष्ठायक मूर्तियों की प्रतिष्ठा की । इस महोत्सव में भीमपल्ली और आशापल्ली आदि के श्रावकों ने भी काफी सहयोग दिया था । प्रतिष्ठा के अनन्तर सूरि महाराज बीजापुर संघ की प्रार्थना से वहां पधारे और वासुपूज्य प्रभु के महातीर्थ की वंदना की। फिर त्रिशृङ्गम पधारे और संघ सहित तारंगाजी एवं आरासण तीर्थों की यात्रा की। मन्त्रदलीय जगतसिंह ने स्वधर्मी वात्सल्य, ध्वजारोपादि कई उत्सव किये। सूरिजी ने यात्रा से लौटकर पाटण चातुर्मास किया । सं० १३८० में सेठ ते पाल रुद्रपाल के मानतुंगविहार जिनालय के योग्य मूलनायक युवाद पेश्वर भगवान की २७ अंगुल को कर्पूर-धवल प्रतिमा, जिनप्रबोधसूरि, जिनचन्द्रसूरि, कपर्दी यक्ष, क्षेत्रपाल, अंबिकादि एवं ध्वजदण्डादि के साथ अन्य श्रावकों की निर्माति बहुत सी प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवायी । मार्गशीर्ष कृष्ण ६ को मालारोपण I व्रतग्रहण, नन्दी महोत्सवादि विस्तार से उत्सव हुए। दिल्ली निवासी सेठ रयपति ने सम्राट गयासुद्दीन तुगलक से तीर्थयात्रा के लिए फरमान प्राप्त कर श्रीजिनकुशलसूरिजी से अनुमति मगाई, फिर विशाल संघ के साथ ० कृ० ७ को प्रयाण करके कन्यानयन, नरभट, फलौदी पार्श्वनाथ की यात्रा कर देश-विदेश के संघ सहित मार्गवर्ती तीर्थस्थान करते हुए पाटण पहुँचे । श्रीजिनकुशलसूरिजी को भी अत्यन्त आग्रहपूर्वक संघ के साथ पधारने की विनती की। सूरिजी १७ साधु और १९ साध्वियों के साथ संघ में Jain Education International सम्मिलित हो संखेश्वर तीर्थादि की यात्रा करते हुए आषाढ़ कृष्ण ६ के दिन शत्रुंजय पहुँचे। वहाँ उसो दिन दो दीक्षाएँ हुईं। दूसरे दिन समवसरण जिनपतिसूरि, जिनेश्वरसूरि आदि गुरुमूर्तियों की प्रतिष्ठा के साथ पाटण में पूर्व प्रतिष्ठित युगादिदेव भगवान को स्थापित किया । आषाढ़ कृष्ण 8 के दिन ब्रतग्रहण, नन्दी महोत्सवादि के साथसाथ सुखकीर्ति गणि को वाचनाचार्य पद दिया । उस यात्रीसंघ के द्वारा तीर्थ के भण्डार में ५००००) रुपये की आमदनी हुई। यह विशाल यात्री संघ सूरिजी के साथ आषाढ़ सुदि १४ को गिरनार पहुँचा, यहाँ भी संघ के द्वारा विविध उत्सवादि हुए। तीर्थ के भंडार में ४००००) रुपये की आमदनी हुई। आनन्द के साथ यात्रा सम्पन्न कर श्रावण शुक्ल १३ को पाटण पधारे। १५ दिन तक नगर के बाहर उद्यान में ठहर कर भाद्रपद कृष्ण ११ को समारोह पूर्वक नगर- प्रवेश हुआ, तदनन्तर संघ ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया । संवत् १३८१ मिती वैशाख कृष्ण ५ को पाटण के शांतिनाथ विधिचैत्य में सूरिजी के करकमलों से विराट प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न हुआ । इनमें जालोर, देरावर तथा शत्रुंजय ( बूल्हावसही और अष्टापद प्रासाद के लिए २४ बिंब ), उच्चानगर के लिए अगणित जिन प्रतिमाएं तथा पाटण के लिए जिनप्रबोधसूरि, देरावर के लिए जिनचन्द्रसूरि अंबिका आदि अधिष्ठायक व स्वभंडार योग्य समवसरण की भी प्रतिष्ठा को । वैशाख कृष्ण ६ के दिन दो बड़ी दीक्षाएं, पांच साधु-साध्वियों की दीक्षा, जयधर्म गणि को उपाध्यय पद तथा अन्य व्रत ग्रहणादि विस्तार से हुए । सूरिमहाराज को वीरदेव आदि ने पाटण से अत्यन्त आग्रह पूर्वक भोमपल्ली बुलाया। संघ ने सम्राट गयासुद्दीन से तीर्थयात्रा के हेतु फरमान प्राप्त कर ज्येष्ठ कृष्ण ५को भीमपल्ली से प्रयाण किया। सूरिजी के साथ १२ साधु और कई साध्वियां For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy