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________________ भूलेश्वर:-भार टुकहा के चितामणी पादनाथ इस मोटी रकम के अलावा छोटी-छोटी रकमें तो कई देहरासर की प्रतिष्ठा सं० १८६८ के दूसरे वैशाख सुद ८ थी जिनका कोई हिसाब नहीं। बम्बई की कोई चन्दाशुक्रवार के दिन सेठ नेमचन्द भाई ने कराई और उसके पानडी ऐसी नहीं होती थी जिसमें उनका नाम न होता लिये रु० ५००००/- दिये। हो। इस प्रकार की रकम भी कई लाख है। आप प्रायः भीडो बाजार:-शान्तिनाथ महाराज के देहरासर सब दान सेठ अमोचन्द साकरचन्द के नाम से ही देते थे और की प्रतिष्ठा सं० १८७६ माह सुद १३ के रोज हुई, उसके इसी में अपना गौरव समझते थे। लिये रु. ४००००/- दिये। इनका रहन-सहन बिलकुल साधारण नहीं था। सिर पर सूरती पगडी और शरीर पर बालाबंधी केडियू लम्बो कोट बोरा बाजार :-शान्तिनाथ महाराज के देहरा कडचलो वाला पहनते थे। सर की प्रतिष्ठा सं० १८६५ माह बद ५ के दिन हुई उनकी सं० १८५५ में सेठ मोतीशाह के पिता की मृत्यु के प्रतिष्ठा के लिये और देहरासर के निर्माण हेतु उनके कुटम्ब बाद उनकी उत्तरोत्तर उन्नति होती गई। इसके बाद सारे ने दो लाख रुपये खर्च किये। सेठ अमोचन्द जिस जगह जीवन में धन सम्बन्धी दु:ख तो इन्होने देखा नहीं। उनके रहते थे और जिसके पास शान्तिनाथजी का मन्दिर है वह ग्रह सं० १८८० से तो और भी बलवान हो गये। कंतासर के तालाब को पूरने के समय से लेकर के अंतिम वास्तव में उपाश्रय था जिसे उनके बड़े भाई नेमचन्द ने तक दिनोंदिन बलवान ही होते रहे। तीन हजार रुपये खर्च कर बनवाया था। पीछे और जगह मोतीशाह सेठ का अपने मुनीमों के साथ सम्बन्ध लेकर वहाँ नेमचन्दभाई ने एक लाख और खर्च कर मन्दिर कुटम्बी जनों के समान था। उनको यही इच्छा रहती बनवाया । प्रतिष्ठा और निर्माण में कुल दो लाख खर्च हुए। थी कि उनके मुनीम भी उनके से धनी बने । मुनीमों को मदरास की दादावाड़ी की जमीन खरीदने और अच्छे बुरे अवसरों पर उदारता पूर्वक मदद करते। सेठ निर्माण हेतु रु. ५००००/- सं० १८८४ में दिया। मोतीशाह के मुनीम लक्षाधिपति हुए हैं, इसके कई पालीताना की धर्मशाला के निर्माण में रु० उदाहरण मौजूद हैं। उनको ट्रॅक में उनके मुनीमों ने ८६,०००/- खर्च हुए। मन्दिर बनवाये हैं। उनके यहां अधिक कार्यकर्ता जेन भायखला की दादावाड़ी:- मन्दिर को जमीन, निर्माण थे। इसके अलावा हिन्दू व पारसी भी थे। सेठ मोती व प्रतिष्ठा में. (सं० १८८५ मगसर सुद ६ ) दो लाख शाह का जैन, हिन्दू व पारसी व्यापारियों व कुटम्बों के रुपये खर्च किये। साथ भी अच्छा सम्बन्ध था। इनमें सम्बन्धित जैनों ने बम्बई गोडीजी के मन्दिर की प्रतिष्ठा सं०१८६८ मोतीशाह हूंक में देहरासर बनाये। हिन्दू व पारसों के वैसाख सुद १० के दिन हुई जिसमें पचास हजार रुपये कुटुम्ब भी इनके प्रत्येक कार्य में हर प्रकार की सलाह दिये। एवं मदद देने को तैयार रहते थे। जिस समय उनके पुत्र पायधनी के आदोश्वरजी के मन्दिर को प्रतिष्ठा खेमचन्द भाई ने पालोताणा का संघ निकाला तब सर सं. १८८२ के ज्येष्ठ सुद १० के दिन हुई। उसको उछा- जमशेदजी ने एक लाख रुपया खर्च किया यह उल्लेखनीय मणि में पचास हजार को बोली बोली। एवं महत्वपूर्ण घटना है। इससे ज्ञात होता है कि परस्पर कर्जदारों को छूट-अंत समय नजदीक आया जान जिन सहकार व सम्बन्ध किसप्रकार हृदय की भावना से कई अशक्त लोगों में रुपया लेना था उनको कर्ज मुक्त करने निभाया जाता था। यही कारण था कि सेठ की मृत्यु के लिये एक लाख रुपया छोड़ दिया। के बाद पालीताणा संघ व प्रतिष्ठा के अवसर पर अनेक इन सब का योग २८,०८,००० अट्ठाइस लाख आठ लोगों ने सहयोग दिया। उनके पुत्र खेमचन्द भाई तो हजार होता है। एक राजा की तरह रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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