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________________ श्रोजिनचन्द्रसरिजी की श्रेष्ठ रचना संवेगरंगशाला आराधना ( संक्षिप्त परिचय ) ले० पं० लालचन्द्र भगवान् गान्धी, बड़ौदा [ सुविहित मार्ग प्रकाशक आचार्य जिनेश्वरसूरिजी के पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरिजी हुए। उनका विस्तृत परिचय तो प्राप्त नहीं होता । युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में इतना ही लिखा है कि 'जिनेश्वरसूरि ने जिनचन्द्र और अभयदेव को योग्य जानकर सूरिपद से विभूषित किया और वे श्रमण धर्म की विशिष्ट साधना करते हुए क्रमशः बुगप्रधान पद पर आसीन हुए। ___आचार्य जिनेश्वरसूरि के पश्चात् सूरिश्रेष्ठ जिनचन्द्रसूरि हुए जिनवे अष्टादश नाममाला का पाठ और अर्थ साङ्गोपाङ्ग कण्ठान था, सब शास्त्रों के पारंगत जिन चन्द्रसूरि ने अठारह हजार श्लोक परिमित संवेगरंगशाला की सं० ११२५ में रचना की। यह ग्रन्थ भव्य जीवों के लिए मोक्ष रूपी महल के सोपान सदृश है। ____ जिनचन्द्रसूरि ने जावालिपुर में जाकर धावकों की सभा में “चीय दण मावरसय' इत्यादि गाथाओं की व्याख्या करते हुए जो सिद्धान्त संवाद कहे थे उनको उन्हीं के शिष्य ने लिस्कर ३०० श्लोक परिमित दिनचर्या नामक ग्रन्थ तैयार कर दिया जो श्रावक समाज के लिए बहुत उपकारी सिद्ध हुआ। वे जिनचन्द्रसूरि अपने काल में जिन-धर्म का यथार्थ प्रकाश फैलाकर देवगति को प्राप्त हुए।" ___ आपके रचित पंच परमेष्ठी नमस्कार फल कुलक, क्षपक-शिक्षा प्रकरण, जीव-विभत्ति, आराधना, पार्श्व स्तोत्र आदि भी प्राप्त हैं। संवेगरंगशाला अपने विषय का अत्यन्त महत्वपूर्ण विशद ग्रन्थ है। जिसका संक्षिप्त परिचय हमारे अनुरोध से जैन साहित्य के विशिष्ट विद्वान पं० लालचन्द्र भ० गांधी ने लिख भेजा है। इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित होना अति आवश्यक है ।-- सं० ] श्रीजैनशासन के प्रभावक, समर्थ धर्मोपदेशक, ज्योति- शाला आराधना की श्रेष्ठ रचना की थी, जो ६००-नो सौ धर गीतार्थ जैनाचार्यों में श्रीजिनचन्द्रसूरिजी का संस्मर- वर्षों के पीछे-विक्रमसंवत् २०२५ में पूर्णरूप से प्रकाश में णीय स्थान है। मोक्षमार्ग के आराधक, मुमुक्षु-जनों के आई है, परम आनन्द का विषय है। परम माननीय, सत्कर्त्तव्य-परायण जिस आचार्य ने आज से बड़ौदा राज्यकी प्रेरणा से सुयोग्य विद्वान चीमनलाल नौ सौ वर्ष पहिले-विक्रम संवत् ११२५ में प्राकृत भाषा डा० दलाल म० ए० ईस्वी सन् १९१६ के अन्तिम चार मास में दस हजार, ५३ गाथा प्रमाण संवेगमार्ग-प्रेरक संवेगरंग- वहीं ठहर कर जेसलमेर किल्ले के प्राचीन ग्रन्थ-भण्डार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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