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________________ [ १५२ | लालबाड़ी किया । वेलजी भाई को दीक्षा देकर मेघमुनि नाम से प्रसिद्ध किया, बहुत से उत्सव हुए। सं० १६६६ में दश साधुओं के साथ चरित्रनायक ने सूरत चौमासा किया | फिर बड़ौदा पधारकर लब्धिमुनिजी के शिष्य मेघमुनिजी व गुलाबमुनिजी के शिष्य रत्नाकर मुनि को बड़ी दीक्षा दी । सं० २००० का चातुमस रतलाम किया, उपधान तप अ दि अनेक धर्म कार्य हुए । सेमलिया जी की यात्रा कर महीदपुर पधारे। महीदपुर में राजमुनि जी के भाई चुनीलालजी बाफणा ने मन्दिर निर्माण कराया था, प्रतिष्ठा कार्य बाकी था, अतः खरतरगच्छ संघ को इसका भार सौंपा गया पर वह लेख पत्र उनके बहिन के पास रखा, वह तपागच्छ की थी उसने उनलोगों को दे दिया। कोर्ट चढ़ने पर दोनों को मिलकर प्रतिष्ठा करने का आदेश हुआ, पर उन्होंने कब्जा नहीं छोड़ा तो क्लेश बढ़ता देख खरतरगच्छ वालों ने नई जमीन लेकर मन्दिर बनाया और उसमें राजमुनिजी व नयमुनिजी के ग्रन्थों का ज्ञान भंडार स्थापित किया। प्रतिमा की अप्राप्ति से संघ चिन्तित था क्योंकि उत्सव प्रारंभ हो गया था फिर उपा ध्यायजी, रत्नश्रीजी और श्रावक और श्राविका गोमी बाई की एक सा प्रतिमा प्राप्त होने व पुष्पादि से पूजा करने का स्वप्न आया । आचार्य श्री ने बीकानेर जाकर प्रतिमा प्राप्त करने की प्रेरणा दी। सं० ११५५ की प्रतिमा तत्काल प्राप्त हो गई और आनन्दपूर्वक प्रतिष्ठासम्पन्न हुई । दादा साहब की मूर्ति पादुकाएँ, राजमुनिजी व सुखसागर जी की पादुकाएं तथा चक्रेश्वरी देवी की भी प्रतिष्ठा हुई । सं० २००१ का चातुर्मास महोदपुर हुआ । बड़ोदिया में पधारने पर उद्यापन व दादासाहब की चरण प्रतिष्ठा हुई शुजालपुर के मंदिर में दादासाहब की चरण प्रतिष्ठा की । स० २००२ का चातुर्मास कर आसामपुरा, इन्दीर होते हुए मांडवगढ़ यात्रा कर रतलाम पधारे। गरवट्ट गाँव में दादासाहब की चरण प्रतिष्ठा की । तद Jain Education International नन्तर भानपुरा कुकुटेश्वर, प्रतापगढ़ व चरणोद पधारे । चरणोद में प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न कराके सं० २००३ को प्रतापगढ़ में चातुर्मास किया । मंदसौर में चक्रेश्वरीजी की प्रतिष्ठा कराई । जावरा से सेमलियाजी का संघ निकला, संघपति चांदमलजी चोपड़ा को तीर्थमाला पह नायी । रतलाम से खाचरोद पधारे । जावरा के प्यारचं द जी पगारिया ने वइ पार्श्वनाथजीका संघ निकाला । तदनंतर जयपुर की ओर बिहार कर कोटा पधारे। गणि श्री भावमुनिजी को पक्षाघात हो गया और जेठ वदि १५ की रात्रि में उनका समाधिपूर्वक स्वर्गवास हो गया । स० २००४ का चातुर्मास कोटा में हुआ । भगवती सूत्रवाचना, अठाई महोत्सव एवं स्वधर्मी वात्सल्या दि अनेक धर्मकार्य सेठ केशरीसिंहजी बाफणा ने करवाये । तदनंतर सूरिजो जयपुर पधारे । अशातावेदनीय के उदय से शरीर में उत्पन्न व्याधि को समता से सहन किया । श्रीमालों के मंदिर में देशगाजीखान से आई हुई प्रतिमाए स्थापित की । कच्छ भुज की दादाबाड़ी की प्रतिष्ठा के लिये संघ की ओर से विनती करने रवजी शिवजी बोरा आये । सं० २००५ का चातुर्मास जयपुर कर स० २००६ का अजमेर में किया । सं० २००७ ज्येष्ठ सुदि ५ को विजयनगर में प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ, चन्द्रप्रभस्वामी आदि के सह दादासाहब के चरणों की प्रतिष्ठा की । फिर रतनचन्दजी संचेती की विनती से अजमेर पधारे । उनके बीस स्थानक का उद्यापन हुआ । भगतियाजी की कोठी के देहरासर में दादा साहब जिनदत्तसूरि मूर्ति की प्रतिष्ठा करवायी । अजमेर से व्यावर पधार कर मुलतान निवासी हीरालालजी भुगड़ी को स० २००७ आषाढ़ सुदि १ को दीक्षित कर हीरमुनि बनाये | उपधान तप हुआ। सूरिजी चातुर्मास पूर्ण कर पाली, राता महावीर जी, शिवगंज, कोरटा होते हुए गढ़सिवाणा पधारे। फिर वांकली, तखतगढ़ होकर श्रीकेशरमुनिजी की जन्मभूमि 2. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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