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________________ अंजार होते हुए भद्रेश्वर तीर्थ की यात्राकर लायजा पधारे। और पड़ाणा में गुरुपादुकाएं प्रतिष्ठित की। डग पधारने यहाँ पूजा प्रभावना, उद्यापनादि अनेक हुए। सं० १९७१ पर श्रीलक्ष्मीचन्दजी बैद के तरफसे उद्यापनादि हुए और का चातुर्मास बीदड़ा, १६७२ का मांडवी किया। यहां दादा जिनकुशलसूरिजी व रत्नप्रभसूरिजी की पादुका प्रतिष्ठा से नांगलपुर पधारने पर गुरुवर्य राजमुनिजी के स्वर्गवास की। मांडवगढ यात्रा करके इन्दौर मक्सीजी, उज्जैन, होते होने के समाचार मिले । सं० १९७३ भुज, १६७४ लायजा हुए महीदपुर पधारे । लब्धिमुनिजी और प्रेममुनिजी को चातुर्मास किया। फिर मांडवी में राजश्रीजी को दीक्षा वीछडोद चातुर्मासार्थ भेजा। स्वयं भावमुनिजी के साथ दी। कच्छ देश में धर्म प्रचार करते हुए १९७५ सं० रुणीजा पधारकर सं० १९८३ का चातुर्मास किया। में दुर्गापुर (नवावास) चौमासा किया और संघ में पड़े हुए १६.८४ महीदपुर, सं० १९८५ का चातुर्मास भाणपुरा दो तड़ोंको एक कर शान्ति की । इन्फ्ल्युएजा फैलने से शहर किया। उद्यापन और बड़ी दीक्षादि हुए । मालवा में खाली हुआ और रायण जाकर चातुर्मास पूर्ण किया। गणिजी महाराज को विचरते सुनकर बम्बई से रवजी सोजसं० १९७३ में डोसाभाई लालचन्द का संघ निकला ही था, पाल ने आग्रह पूर्वक बम्बई पधारने को विनती की । आपश्री फिर भुज से शा० वसनजी वाघजी ने भद्रेश्वर का संघ नामानुग्राम विचरते हुए घाटकोपर पहुँचे। मेघजी सोजपाल, निकाला । गणिवर्य यात्रा करके अंजार पधारे । इधर गणसी भीमसी आदि की विनतिसे बम्बई लालवाड़ी पधारे । सिद्धाचलजी यात्रा करते हुए श्रीलब्धिमुनिजी आ मिले। दादासाहब की जयन्ती श्रीगौड़ीजी के उपाश्रय में श्री विजउनके साथ फिर भद्रेश्वर पधारे । सं० १६७६ का चातु- यवल्लभसूरिजी की अध्यक्षता में बड़े ठाट-माठ से मनायी। सि भूज और सं० १६७७ का मांडवी किया। फिर जाम- सं० १९८६ का चौमासा लालवाड़ी में किया । नगर, सूरत, कतार गांव, अहमदाबाद, सेरिसा, भोयणीजी, गणिवर्य श्रीरतनमुनिजी के उपदेश और मूलचन्द हीरापानसर, तारंगा, कुंभारियाजी, आबू यात्रा करते हुए चन्द भगत के प्रयास से महावीर स्वामी के पीछे के खरतरअणादरा पधारे । लब्धिमुनिजी, भावमुनिजी को शिवगंज गच्छीय उपाश्रय का जीर्णोद्धार हुआ। सं० १९८७ का भेजा और स्वयं प्रेममुनिजी के साथ मंढार चातुर्मास चातुर्मास वहीं कर लब्धिमुनिजी के भाई लालजी भाई को किया । पाली में पन्यास श्रीके शरमुनिजी से मिले। सं० १९८८ पो० सु० १० को दीक्षितकर महेन्द्र मुनि नाम दयाश्रीजी को दीक्षा दो। सं० १९८० का चातुर्मास से लब्धिमुनि जी के शिष्य बनाये । प्रेममुनिजी को योगोजेसलमेर किया। किले पर दादा साहब की नवीन देहरी द्वहन के लिए श्री केशरमुनिजी के पास पालीताना भेजा। में दोनों दादासाहब की प्रतिष्ठा कराई । सं० १९८१ में वहां कच्छ के मेधजी को सं० १९८६ पोष सुदि १२ के फलोदी चातुर्मास किया । ज्ञानश्रीजीव वल्लभश्रीजी के आग्रह दिन केशरमुनिजी के हाथ से दीक्षित कर प्रेममुनिजी का से हेमश्रीजी को दीक्षा दी। लोहावट में गौतमस्वामी और शिष्य बनाया। चक्रेश्वरीजो की प्रतिष्ठा कर अजमेर पधारे । तदनन्तर श्री रत्नमुनिजी महाराज सूरत, खंभात होते हुए रतलाम, सेमलिया, पधारे । सं० १९८२ नलखेड़ा चातु- पालीताना पधारे । श्री केशरमुनिजी को वन्दन कर फिर र्मास किया, चौदह प्रतिमाओं की अंजनशलाका की। गिरनारजी को यात्रा की और मुक्तिमुनिजी को बड़ी दीक्षा मंडोदा में रिखबचन्दजी चोरडिया के बनवाये हुए गुरुमदिर दी। सं० १९८६ का चातुर्मास जामनगर करके अंजार में दादा जिनदत्तसूरि आदि की प्रतिष्ठा करवायी । खुजनेर पधारे । भद्रेश्वर, मुंद्रा, मांडवी होकर मेरावा पधारे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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