SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १४० ] इन्होंने जीवविचार, नवतत्त्व आदि प्रकरण एवं प्रतिक्रमण, गुरुवर्य महोदय की सहायता की। स्तवन, सज्झाय आदि सीख लिये। आप ही के अदम्य साहस और प्रेरणा से वि० सं० गणाधीश महोदय कोटा से जयपुर पधारे। वहीं २००६ में मेड़ता रोड फलोधी पार्श्वनाथ विद्यालय की वि० सं० १६७६ के फाल्गुन मास की कृष्ण पंचमी को स्थापना हुई। उसो वर्ष गुरुदेव ने मेडता रोड में उपधान १२ वर्ष के किशोर बालक धनपतशाह ने शुभ मुहूर्त में मालारोहण के अवसर पर मार्गशीर्ष शुक्ला १० के दिन बड़ी धूमधाम से ४ अन्य वैरागियों के साथ दीक्षा धारण आपको उपाध्याय पद से विभूषित किया। आपके गुरुदेव की। इनका नाम 'कवीन्द्रसागर' रखा गया और गणा- का पक्षाघात से उसी वर्ष पोष कृष्णा अष्टमी को स्वर्गवास धीश महोदय के शिष्य बने । हो जाने पर उपस्थित श्रीसंघ ने आप श्री को आचार्यपद अध्ययन पर विराजमान होने की प्रार्थना की, किन्तु आपश्री ने ___ अपने योग्य गुरुदेव को छत्रछाया में निवास करके फरमाया हमारे समुदाय में पराम्परा से बड़े ही इस पद व्याकरण, न्याय, काव्य, कोश, छन्द, अलंकार आदि शास्त्र को अलंकृत करते हैं । अत: यह पद वीरपुत्र श्रीमान आनन्दपढ़े एवं संस्कृत प्राकृत गुर्जर आदि भाषाओं का सम्यग सागरजी महाराज सा० सुशोभित करेंगे। मुझे जो गुरुदेव ज्ञान प्राप्त किया व जैन शास्त्रों का भी गम्भीर अध्ययन बना गये हैं, वही रहूँगा । कितनो विनम्रता और निःस्पृहता ! किया। 'यथानाम तथागुणः' के अनुरूप आप सोलह योग-साधन वर्ष की आयु से ही काव्य प्रणयन करने लग गये थे। आपको आत्मसाधना के लिये एकान्त स्थान अत्यधिक स्वल्प काल में ही आशु कवि बन गये। आपने संस्कृत रुचिकर थे। विद्याध्ययनान्तर आपश्री योगसाधना के लिये और राष्ट्रभाषा में काव्य साहित्य में अनुपम वृद्धि को है। कुछ ससय ओसियां के निकट पर्वत गुफा में रहे थे, एवं दार्शनिक एवं तत्वज्ञान से पूर्ण अनेक चैत्यवन्दन, स्तवन, लोहावट के पास की टेकरी भी आपका साधना स्थल स्तुतियाँ सज्झाएँ और पुजाएं बनाई है जो जैन साहित्य रहा था। की अनुपम कृतियां हैं। जैन साहित्य के गम्भीर ज्ञान जयपुर में मोहनवाड़ी नामक स्थान पर भी आपने का सरल एवं सरस विवेचन पढ़ कर पाठक अनायास हो कई बार तपस्या पूर्वक साधना की थी। वहाँ आपके तत्वज्ञान को हृदयंगम कर सकता है और आनन्द-समुद्र में सामने नागदेव फन उठाये रात्रि भर बैठे रहे थे। यह दृश्य मम हो सकता है। आधुनिक काल में इस प्रकार तत्त्व- कई व्यक्तियों ने आँखों देखा था। आप हठयोग को आसन ज्ञानमय साहित्य बहुत कम दृष्टिगोचर होता है। जैन प्राणायाम मुद्रानेति, धौती आदि कई क्रियायें किया समाज को आपसे अत्यधिक आशाएं थीं, कि असामयिक करते थे। निधन से वे सब निराशा में परिवर्तित हो गई। तपश्चर्या आपने ४१ वर्ष के संयमी जीवन में ३० वर्ष गुरुदेव के प्रायः देखा जाता है कि ज्ञानाभ्यासी साधु साध्वी चरणों में व्यतीत किये और मारवाड़, कच्छ, गुजरात, वर्ग तपस्या से वंचित रह जाते हैं किन्तु आप महानुभाव उत्तर प्रदेश, बंगाल में विहार करके तीर्थ यात्रा के साथ ही इसके अपवाद रूप थे। ज्ञानार्जन, एवं काव्य-प्रणयन के धर्म प्रचार किया। जयपुर, जैसलमेर आदि कई ज्ञान के साथ ही ताश्चर्या भो समय समय पर किया करते भंडारों को सुव्यवस्थित करने, सोचपत्र बनाने आदि में थे। ४२ वर्ष के संयमी जोवन में आपने मास-ग, पन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy