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________________ । १६ । आपका वर्चस्व अच्छा था। आपने हिन्दी भाषा में हिन्दी भाषा के आप प्रखर हिमायती थे। छापकी गद्य व पद्य की रचना की। प्राकृत भाषा के कई आगमों व्याख्यान शैली बड़ी विद्वता पूर्ण व रोचक थी। साधु का भाषांतर हिन्दी में किया। कई स्वतंत्र ग्रन्थों की साध्वी वर्ग को अभ्यास कराना उसे प्रवचन ( भाषण ) हिन्दी भाषा में रचना की। शैली सिखाना आपश्री का खास लक्ष था। __ आपश्री ने राजावाटी, तोरावाटी, शेखावाटी, गोड- प्रतनी श्रीवल्लभश्रीजी, प्र० श्रीप्रमोदश्रीजी, प्र० वाड, झोरामगरा, मालवा, राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र श्रीविचक्षणश्रीजी आदि साध्वी वर्ग को आपने ही अभ्यास कच्छ, खानदेश आदि भारत के विभिन्न प्रांतों में विचरकर कराया व भाषण शैली सिखायी। समुदाय पर आपका जैनधर्म का प्रचार किया। भारी उपकार है। आप द्रव्यानुयोग के अच्छे व्याख्याता ___सं० १९८६ में कच्छ प्रान्त के अंजार नगर में देश के थे। कई जिज्ञासु व्यक्ति आपसे तत्वचर्चा कर ज्ञानको प्यास स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी महात्मा गांधी से मुलाकात बुझाने आते थे। तत्वचर्चा के रसिकों के लिये “आगमहुई । “खादी और जैन साधु" इस विषय पर काफो सार" नामक विवेचनात्मक ग्रंथ की रचना की । आपश्री ने महत्वपूर्ण चर्चा हुई। आपके सुधारकवादी विचारधारा से अपने जीवन काल में करीबन ४६ पुस्तकों का प्रकाशन महात्मा जी प्रभावित हुए। किया। प्रचुर मात्रा में आपने साहित्य की सेवा की, खूब आपश्री के गुरुवर्य, चरितरत्न, गणाधीश्वरजो श्रीमद् ज्ञान दान दिया। जगह-जगह ज्ञान की प्याऊ खोली। त्रैलोक्यसागरजी म. सा. सं० १९७४ राजस्थान के पूज्य स्व० आचार्य श्री ने अपने जन्म स्थान सैलाना लोहावट नगर में श्रावण शुक्ला १५ के दिन स्वर्ग सिधाये। नगर (जि. रतलाम में) ज्ञानमंदिर की स्थापना की। वहाँ उसके पश्चात् प० पू० प्रातः स्मरणीय, शान्त-स्वभावी, के राजा साहब आपके गृहस्थी जीवन के मित्र व सहपाठी आचार्यदेव श्री १००८ श्रीजिनहरिसागरसूरीश्वरजी म० थे। राजा साहब के आग्रह से आपने सैलाना में श्रीआनंदसा० समुदाय के संचालक बने। आपश्री सरल स्वभाव ज्ञानमंदिर की स्थापना की। ज्ञानमन्दिर का शिला के चारित्र-सम्पन्न, आचार्य थे। आप पूज्यपाद श्री ने स्थापन, सेठ बुद्धिसिंहजी बाफना के कर कमलों से सम्पन्न काफी समय तक समुदाय का संचालन किया । सं० २००६ हा, एवं ज्ञानमंदिर का उद्घाटन सेलोना-नरेश के करमें श्री फलोदी पार्श्वनाथ तीर्थ ( मेडतारोड ) में स्वर्ग कमलों से सम्पन्न हुआ। श्रीआनंद ज्ञानमंदिर आपके सिधाये । तत्पश्चात् सं० २००६ माघशुदी ५ को प्रतापगढ़ जीवनकी जीती जागती अमर ज्योति है। (राजस्थान) में भारतवर्ष के समस्त खरतरगच्छ श्रीसंघ ने आचार्य पद पर विभूषित होने के पश्चात् वि० सं० भारी समारोह पूर्वक आपश्री को आचार्य पद पर विभूषित २००७ का चातुर्मास, करने आप कोटा पधारे। सेठ किया। जबसे समुदाय संचालन को सारा उत्तरदायित्व साहब क कई समय से आग्रह था, अतः आप कोटा आपके ऊपर आ गया। पधारे। कोटा के चातुर्मास को ऐतिहासिक चातुर्मास आपश्री ने कई जगह विद्याशाला, पाठशाला, पुस्त- माना जा सकता है। आप चातुर्मास विराजे वहां उसी कालय आदि को स्थापना करवाई। आप नवयुग के काटा नगर में दिगंबर आचार्य पू० श्री सूर्यसागरजी म. निर्माता थे, उस समय जनता में पढ़ने-लिखने का अधिक व स्थानकवासी सम्प्रदाय के आचार्य श्रोचौथमलजी म. प्रचार नहीं था, जिसमें कन्याशिक्षा प्राय: शून्य-सी थी। भी वहीं चातुर्मास रहे। तीनों महारथयों ने एकही पाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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