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________________ ४ धन खो देने के कारण सेठ-पुत्र का पिता द्वारा है। 'ठकुरै साह री बात' में पद्य का रूप इस प्रकार है - अपने घर से निकाला जाना । __ सरसो पाटण सरस नय, सुसरै ठकुरो नांव । ५ किसी वृक्ष के नीचे सोए हुए अथवा छपे हुए ईसर तूठे पाईये, आ गैहण ओ गांव ॥ कथानायक द्वारा देवो अथवा पक्षियों की बात- उपर्युक्त कथावस्तु में पुरुषवेश धारण करने वाली नारो चीत सुनना तथा उससे लाभान्वित होना । द्वारा दूसरा नारी के साथ विवाह करना भी आश्चर्यजनक ६ उड़ने वाले वृक्ष पर बैठकर कथानायक का दूर देश घटना है । यह घटना अंग्रेज-कवि शेक्सपीयर विरचित में पहुंचना और वहाँ धन प्राप्त करना तथा विवाह 'बारहवीं रात' ( Twelfth Night ) नामक प्रसिद्ध करना। नाटक के कथानक का सहज हो स्मरण करवा देती है, - ७ कथानायक का देववाणी से दूर-देश में विवाहित जिसमें समान रूप वाले भाई-बहिन घर से निकलते हैं और होना। अंत में आश्चर्यजनक रूप से उनके प्रेम-विवाह सम्पन्न होते ८ वर द्वारा दीवार पर या वधू के वस्त्र पर कुछ हैं। वहाँ बहिन पुरुषवेश में एक 'ड्यूक' की सेवा करती लिख कर चुपचाप अज्ञात-दशा में चले जाना है, जो आगे जाकर उसका पति बनता है। इन दोनों ६ वधू द्वारा पुरुष-वेश धारण करके अपने पति की कथानकों में विशेष समानता न होने पर भी परुषवेश तलास में निकलना और अंत में अपने पति का धारिणी नारो पर दूसरो नारो का मुग्ध होना और उसके पता लगाने में सफल होना। साथ विवाह करने के लिए इच्छा करना तो स्पष्ट ही है । १० पुरुष-वेश धारण करने वाली युवती का अन्य इतना ही नहीं, वह भ्रम में पड़ कर उसी के समान रूप युवती से विवाह होना और अंत में उसके पति वाले उसके भाई से विवाह भी कर लेती है, जिसके साथ को उसका परिणीता पत्नी के रूप में प्राप्त होना। उपका पूर्व-परिचय नहीं है। महाकवि शेक्सपोयर ने अपने ११ घर से निकले हुए युवक कथानायक का अंत में नाटक का कथानक किसी लोककथा के आधार पर ही धन-सम्पन्न होना तथा उसे सुन्दरी पत्नी प्राप्त । खड़ा किया है। इस प्रकार लोककथाओं को सार्वभौमिक होना। समप्राणता सिद्ध होती है। महाकवि समयसुन्दरजी ने अपने काव्य के अंत में जेन- महाकवि समयसुन्दरजी ने अपनी कथानक रचनाओं में परम्परा के अनुसार कथानायक के पूर्वजन्म का वृत्तांत देकर स्थान-स्थान पर लोक-सुभाषितों का प्रयोग करके उनको उसे समाप्त किया है परन्तु उपर्युक्त प्रसंगों पर ध्यान देने से सजाया है । इस क्रिया से उनकी रचना में सामर्थ्य का विदित होता है कि वे देश-विदेश को अनेक लोककथाओं संचार हुआ और साथ ही अनेक लोक-सुभाषितों का सहज में सहज ही देखे जा सकते हैं और कुल मिला कर एक हो संरक्षण भी हो गया। राजस्थान के अन्य कवियों ने रोचक लोककथा का ठाठ सामने खड़ा कर देते हैं। भी इसी प्रकार लोक-सुभाषितों का अपनी रचनाओं में बड़े इस कथानक में वह पद्य पाठक का ध्यान विशेष रूप चाव से प्रयोग किया है। 'बातों' में तो इनका प्रयोग और से आकृष्ट करता है. जिसे वर एक दीवार पर अपने परिचय भी अधिक रुचि से हआ है। इन लोक-सुभाषितों में कई हेतु लिख कर चुपचाप चला जाता है। इसी प्रकार को प्राकृत-गाथाएं भी हैं, जो काफी लम्बे समय से चली आ अन्य लोक कथा में यह पद्य अनेक रूपान्तरों में देखा जाता रहीं थीं और थोड़ो-बहुत रूपान्तरित होकर लोकमुख पर अव. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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