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________________ [ १०० ] कथाओं का बालावबोध हेतु प्रयोग हुआ है। इस प्रकार से पालन किया गया। बालावबोध टोकाए लोककथाओं के अध्ययन के लिए बड़ी जब पुण्यसार बड़ा हुआ तो उसको पढ़ने के लिए उपयोगी हैं। जैन कवियों ने अपने कथा-काव्यों में भी पाठशाला में भेजा गया। उसी पाठशाला में सेठ रत्नसार प्रचुरता के साथ लोककथाओं का आधार ग्रहण किया है। को पुत्री रत्नवती भी पढ़ती थी। वह पुरुष-निंदक थी। इस प्रक्रिया ने एक नया ही वातावरण बना दिया है। वहां एक दिन इन दोनों में विवाद हो गया और पुण्यसार ने लोककथाओं को साधारण परिवर्तन के साथ धार्मिक रत्नवती को पत्नी के रूप में प्राप्त करने का निश्चय प्रकट परिवेश में प्रस्तुत किया गया है। पात्रों एवं स्थानों के कर दिया। नाम रख दिए गए हैं और उनके सुख-दुःख का कारण पुण्यसार ने घर आकर अन्न-पान छोड़ दिया और पूर्वजन्म के भले अथवा बुरे कर्मो को प्रगट किया गया है। रत्नवती से विवाह करने का निश्चय सबको कह सुनाया। जिस प्रकार बोद्ध कथा-साहित्य में लोककथाओं का धार्मिक उसका पिता पुरन्दर सेठ नगर में बड़ी प्रतिष्ठा रखता था । दृष्टि से प्रयोग हुआ है, वैसा ही कुछ जैन साहित्य में वह रत्नसार के घर गया और अपने पुत्र के लिए उनकी भी हुआ है। परन्तु दोनों जगह प्रयोग करने की शैली पुत्रो रत्नवती को मांग को। परन्तु रत्नवती इस सम्बन्ध में कुछ भिन्नता अथवा अपनी विशेषता है। साथ ही के लिए एकदम नट गई। फिर भी उसके पिता ने उसे ध्यान रखना चाहिये कि एक ही लोककथा को आधार अबोध समझ कर उसकी सगाई पुण्यसार के साथ मान कर अनेक जैन विद्वानों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की कर दी। है, जो उन लोककथाओं की जनप्रियता तथा बोधपूर्णता जब पुण्यसार कुछ और बड़ा हुआ तो वह जुआरियों की सूचक हैं। महाकवि समयसुन्दरजो ने भी अनेक की संगत में पड़ गया और एक दिन उसके पिता के यहां कथा-काव्यों की रचना की है, जिनको परम्परा के अनु- धरोहर रूप में पड़ा हुआ रानी का हार जुए में हार गया। सार 'रास' 'चौपई' अथवा 'प्रबंध' नाम दिया गया है। फल यह हुआ कि पुण्यसार को अपना घर छोड़ना यह विषय अति-विस्तृत विवेचना की अपेक्षा रखता है परन्तु पड़ा और वह जंगल में जाकर एक बड़ के कोटर में रात यहां स्थानाभाव के कारण उनकी केवल एक रचना पर बिताने के लिए बैठ गया। ही कुछ चर्चा की जाती है । महाकवि प्रणोत 'श्री पुण्यतर रात्रि के समय उस बड़ के पेड़ पर पुण्यसार ने चरित्र चौपई' नामक कथाकाव्य प्रसिद्ध है, जो श्री दो देवियों को परस्पर में बातचीत करते हुए सुना। भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित 'समयसुन्दर रास पंचक उनके वार्तालाप से प्रगट हुआ कि वल्लभी नगर में सुन्दर सेठ में प्रकाशित हो चुका है। इस काव्य की वस्तु संक्षिप्त रूप ने अपनी सात पुत्रियों के विवाह की पूर्ण तयारी कर में इस प्रकार है रखी है और लम्बोदर के आदेश से उनके लिए वर पाने ___ धर्मात्मा पुरन्दर सेठ के पुण्यश्री नामक पतिव्रता की प्रतीक्षा में बैठा है। यह कौतुक को वस्तु थी। पत्नी थी, परन्तु उनके कोई पुत्र न था। अतः वे उदास अत: उसे देखने के लिए उन देवियों ने वटवृक्ष को मन्त्र रहते थे। आखिर सेठ ने पुत्र हेतु कुलदेवी को आराधना प्रभाव से उड़ाया और वे वल्लभी आ पहुंचीं। कहना की, जिसके वरदान से उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र न होगा कि पुण्यसार भी वृक्ष के कोटर में बैठा हुआ का नाम पुण्यसार रखा गया और उसका बड़े दुलार वहीं आ पहुँचा । फिर दोनों देवियाँ नायिका के रूप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
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