SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्य और गुण की चर्चा के अनन्तर कर्म निरूपण में हैं। यद्यपि हेमचन्द्रसूरि ने केवलवाद को ही स्वीकार जैन गुणरत्न कर्म का स्वतंत्र लक्षण ही देते हैं। यह है “संयोग- दर्शन को दृष्टि से प्रमाणमीमांसा में किया है फिर भी यहां विभागयोरनपेक्षकारणं कर्म" (पृ० ५३२)। यहां वे प्रशस्त- प्रामाणिक टीकाकार गुणरत्न तीनों को अच्छी तरह समझा पाद भाष्य का अनुसरण करते हैं। उन्हें तर्कभाषाकार कर तीनों के भेद की आवश्यकता भो समझाते हैं। कथा का और गोवर्धन का दिया हुआ लक्षण संतोष नहीं दे को चर्चा के इस प्रसंग में निग्रहस्थान की चर्चा भी समासका है। सामान्य, विशेष समवाय और अभाव ये चारों विष्ट होती है। कथा में केवलवादी और प्रतिवादी ही पदार्थ वैशेषिक के ही अपने पदार्थ हैं। फिर भी यहाँ भाग लेते हैं इस मत का खण्डन करते हुए गोवर्धन वादी गणरत्न इन पदार्थों का खण्डन नहीं करते हैं सामान्य और प्रतिवादी के समूह अर्थात् एक से अधिक व्यक्ति भो में सामान्य या जाति उपाधि से किस तरह भिन्न है, यह इसमें भाग ले सकते हैं, गुणरल उन्हीं का अनसरण करते समझाते हैं। उनके मतानुसार जाति संकर से मुक्त होनी हैं। इस विषय में रत्नकोशकार ने कथा के जो अन्तर प्रकट चाहिए (पृ० ५३४) । "ब्राह्मणत्व" जाति किस तरह किया है उसका खण्डन भी गुणरत्न करते हैं । निग्रह चारों प्रकार से शक्य होती है यह तार्किक युक्ति से वे स्थान की चर्चा में हेत्वाभास की चर्चा एक बार आचकी प्रस्तुत करते हैं । विशेष की खास चर्चा न करते हए समवाय है वे इस वास्ते पुनरावृत्ति नहीं करते हैं। छल और गति की चर्चा में स्वरूप सम्बन्ध से समवाय किस तरह भिन्न के विषय में भी वे अधिक कुछ विवरण नहीं करते हैं है और अवयवी केवल अवयवों का समूह न होकर अवयवों क्योंकि कथा की चर्चा में ये सब आ जाते हैं। से भिन्न है यह न्याय वैशेषिक का सिद्धान्त वे अच्छी तरह ___ संक्षेप में तर्कभाषाकार और उनके टीकाकार प्रकाप्रतिपादित करते हैं (पृ०५३७ )। शिकाकार गोवर्धन ने जिन विषयों की विशेष चर्चा नहीं समवाय के बाद अभाव की चर्चा वे विशेष रूप से । की है, ऐसे विषयों की चर्चा गणरत्न ने अपनी तर्कतरकरते हैं। अन्योन्याभाव से संसर्गाभाव, जिसके तीन ङ्गिणी में आधुनिक प्रामाणिक टीकाकार की तरह की है। प्रकार हैं, वह कैसे पृथक हैं इसे विशदता से और विस्तार ये विषय हैं (१) मङ्गलवाद, (२) काशीमरण मुक्ति, (३) से वे समझते है। इपो चर्चा में प्रत्येक अभाव एक दूसरे उद्देश्य, लक्षण और परीक्षा का विस्तार से विवरण, (४) से क्यों भिन्न हैं यह भी वे अच्छी तरह समझाते हैं (पृ०. कारण लक्षण (५) षोढा सन्निकर्ष (६) व्याप्ति (७) अवच्छे५४१-५२) । मीमांसक जो कि अभाव को अलग नहीं दकत्व (८) सामान्यलक्षणा तथा ज्ञानलक्षणा प्रत्यासत्ति (6) मानते हैं उनका खण्डन भी वे न्याय वैशेषिक के सिद्धान्तों हेतु केतीन प्रकार (१०) सत्प्रतिपक्ष और संदेह का भेद (११) के अनुसार करते हैं। शब्द की अनित्यता (१२) शब्द शक्तियाँ (१३) प्रामाण्यवाद आत्मा, शरीर, इन्द्रिय और अर्थ के निरूपण के अनन्तर में मीमांसकों के तीनों मत की आलोचना (१४) शरीरत्व न्याय के अवशिष्ट आठ प्रभेदों में वे अत्यन्त संक्षेप करते जाति (१५) प्रलय (१६) गुण का लक्षण (१७) चित्ररूप हैं। सिद्धान्त की चर्चा में गणरल गोवर्धन का अनुसरण (१८) पाकज प्रक्रिया (१६) पृथक्त्व और अन्योन्याभाव का करते हैं और गोवर्धन ने वार्तिककार के मतानुसार तर्क भेद (२०) अन्यथाख्याति और अभाव के प्रकारों के भेद भाषाकार जो कि भाष्यकार वात्स्यायन के मत का इत्यादि हैं। स्वीकार करते हैं उनका खण्डन करते हैं । गुणरल भी उसी तरह तर्कभाषाकार के मत का खंडन विशेषत: अभ्यु- न्याय की अन्य कृतियों में शशधर टिप्पण वगैरह भी पगम सिद्धान्त के भेद के विषय में करते हैं। सिद्धान्त के उन्होंने लिखा है। काव्यप्रकाश की भी विस्तृत टीका उनको बाद तर्क का लक्षण देकर प्रकाशिकाकार के अनुसार तर्क कृति है इस तरह खरतरगच्छ के यह विद्वान अपने समय के प्रकार समझाते हैं (पृ० ५८३-८४)। के पदवाक्यप्रमाणज्ञ ऐसे एक गच्छ के गौरव प्रदान करने न्याय शास्त्र के अन्य पदार्थों को विशेष चर्चा न करते वाले विद्वान थे। आशा है खरतर गच्छ के श्रेष्ठी उनकी हावे वादजल्प और वितण्डा ये तीन पदार्थों को समझाते कृतियों को प्रकाश में लाने का सविशेष प्रयत्न करगे ।. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012019
Book TitleManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherManidhari Jinchandrasuri Ashtam Shatabdi Samaroh Samiti New Delhi
Publication Year1971
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy