SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति का पर्यवेक्षण गणितानुयोग का गणित सम्यक् श्रुत है मिथ्याश्रतों को नामावली में गणित को मिथ्याश्रुत माना है', इसका यह अभिप्राय नहीं है कि-"सभी प्रकार के गणित मिथ्याश्रुत हैं। आत्मशुद्धि की साधना में जो गणित उपयोगो या सहयोगी नहीं है, केवल वही गणित "मिथ्याश्रुत" है ऐसा समझना चाहिए । यहां "मिथ्या" का अभिप्राय "अनुपयोगी" है-झूठा नहीं। वैराग्य को उत्पत्ति के निमित्तों में लोक भावना अर्थात् लोक स्वरूप का विस्तृत ज्ञान भी एक निमित्त है२, अतः अधो, मध्य और उर्ध्व लोक से सम्बन्धित सारा गणित “सम्यक्श्रुत" है, क्योंकि यह गणित आजीविका या अन्यान्य सावध क्रियाओं का हेतु नहीं हो सकता है। स्थानांग, समवायांग और व्याख्याप्रज्ञप्ति- इन तीनों अंगों में तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति-इन तीनों उपांगों में गणित सम्बन्धी जितने सूत्र हैं वे सब सम्यक् श्रुत हैं क्योंकि अंग-उपांग सम्यक् श्रुत है। अन्य मान्यताओं के उद्धरण :स्वमान्यताओं का प्ररूपण : चन्द्र-सूर्यप्रज्ञप्ति में अनेक अन्य मान्यताओं के उद्धरण दिए गए हैं साथ ही स्वमान्यताओं के प्ररूपण भी किए गए हैं। अन्य मान्यताओं का सूचक "प्रतिपत्ति" शब्द है चन्द्र-सूर्यप्रज्ञप्ति में जितनी प्रतिपत्तियां हैं उनकी सबकी सूची इस प्रकार है - सूर्यप्रज्ञप्ति में प्रतिपत्तियों की संख्या प्राभृत प्राभृत-प्राभृत सूत्र प्रतिपत्ति संख्या ६ प्रतिपत्तियां ५ प्रतिपत्तियां स्वमत कथन ७ प्रतिपत्तियाँ ८ प्रतिपत्तियां "एक के समान स्वभान्यता" ३ प्रतिपत्तियां ८ प्रतिपत्तियां २ प्रतिपत्तियां २३ ४ प्रतिपत्तियां २४ १२ प्रतिपत्तियां by owg van mo १. नन्दीसूत्र सूत्र ७७ जगत्कायस्वभावी च संवेग-वेराग्यार्थम तत्त्वार्थसूत्र अ. ७ सूत्र ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy