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________________ श्री कन्हैयालाल 'कमल' चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति ज्योतिष विषय के उपांग है— यद्यपि इनमें गणित अधिक है और फलित अत्यल्प है फिर भी इनका परिपूर्ण ज्ञाता शुभाशुभ निमित्त का ज्ञाता माना जाता है - यह धारणा प्राचीन काल प्रचलित है । २६ ग्रह-नक्षत्र मानवमात्र के भावी के द्योतक हैं अतएव इनका मानव जीवन के साथ व्यापक सम्बन्ध है । निमित्त शास्त्र के प्रति जो मानव की अगाध श्रद्धा है वह भी ग्रह-नक्षत्रों के शुभाशुभ प्रभाव के कारण ही है । श्रमण समाचारी के अनुसार निमित्त शास्त्र का उपयोग या अतएव निमित्त का प्रयोक्ता "पापश्रमण " " एवं आसुरी भावना वाला यथा जन्म, जरा, मरण से त्राण देने में निमित्त शास्त्र का ज्ञान सर्वथा असमर्थ है । ऐसे अनेक निषेधों के होते हुए भी आगमों में निमित्त शास्त्र सम्बन्धी अनेक सूत्र उपलब्ध है । १ - ज्ञान वृद्धि करने वाले दश नक्षत्र हैं* २ - मानव के सुख-दुःख के निमित्त ग्रह-नक्षत्र हैं प्रव्रज्यायोग तथा प्रव्रज्या प्रदान के तिथि नक्षत्रादि का विधान भी जैनाचार्यों ने किया है । अन्तिम तीर्थंकर महावीर के निर्वाण काल में आए हुए भस्मग्रह के भावी परिणामों ने तो भावुक भव्य जनों के मानस पर असीम असर किया है - यह भी निमित्त शास्त्र की ही देन है । ज्योतिषीदेवों का जीव जगत् से सम्बन्ध इस मध्यलोक के मानव और मानवेतर प्राणि जगत् से चन्द्र आदि ज्योतिषी देवों का शाश्वत सम्बन्ध है । क्योंकि वे सब इसी मध्यलोक के स्वयं प्रकाशमान देव हैं और वे इस भूतल के समस्त पदार्थों को प्रकाश प्रदान करते रहते हैं । ज्योतिष लोक और मानव लोक का प्रकाश्य प्रकाशक भाव सम्बन्ध इस प्रकार है । चन्द्र शब्द की रचना द आह्लाद धातु से "चन्द्र" शब्द सिद्ध होता है । चन्द्रमाह्लादं मिमीते निर्मिमीते इति चन्द्रमा १. उत्त० अ० १७, गाथा १८ २. उत्त० अ० ३६, गाथा २६६ ३. ४. ५. ६. Jain Education International प्रयोग सर्वथा निषिद्ध हैमाना गया है । उत्त० अ० २०, गाथा ४५ स्था० अ० १० सू० ७८१ सम० १० रणिकर - दिणकराणं, णक्खत्ताणं महग्गहाणं च ॥ चार-विसेमेण भवे सुह- दुक्खविही मणुस्सा ॥ जीवा प्रति० ३, सूत्र १ o ( सूर्य० प्रा० १० प्राप्रा १९ सू० ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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