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________________ २४ श्री कन्हैयालाल 'कमल' स्थानांग अंग आगम है ---इसमें कहा गया नक्षत्र गणनाक्रम यदि स्वमान्यता के अनुसार है तो सूर्यप्रज्ञप्ति में कहे गए नक्षत्र गणनाक्रम को स्वमान्यता का कैसे माना जाय ? क्योंकि उपांग की अपेक्षा अंग आगम की प्रामाणिकता स्वतः सिद्ध है। यदि स्थानांग में निर्दिष्ट नक्षत्र गणनाक्रम को किसी व्याख्याकर ने अन्य मान्यता का मान लिया हो तो परस्पर विरोध निरस्त हो जाता है। प्राभृत पद का परमार्थ : सूर्यप्रज्ञप्ति-वृत्ति के अनुसार प्राभृत शब्द के अर्थ इष्ट पुरुष के लिए देश-काल के योग्य हितकर दुर्लभ वस्तु अर्पित करना। अथवा जिस पदार्थ से मन प्रसन्न हो ऐसा पदार्थ इष्ट पुरुष को अर्पित करना ये दोनों शब्दार्थ हैं। चन्द्र सूर्यप्रज्ञप्ति से सम्बन्धित अर्थ --- विनयादि गुण सम्पन्न शिष्यों के लिए देशकालोपयोगी शुभफलप्रद दुर्लभ ग्रन्थ स्वाध्याय हेतु देना। यहाँ "देशकालोपयोगी" विशेषण विशेष ध्यान देने योग्य है। कालिक और उत्कालिक नन्दीसूत्र में गमिक को "उत्कालिक" और आगमिक को "कालिक" कहा है। १. क-अथ प्राभूतमिति का शब्दार्थ ? उच्यते-इह प्राभूतं नाम लोके प्रसिद्धं यदभीष्टाय पुरुषाय देश-कालोचितं दुर्लभ-वस्तु परिणामसुन्दरमुपनीयते । ख -प्रकर्षण आसमन्ताद भ्रियते-पोष्यते चित्तमभीष्टस्य पुरुषस्यानेनेति प्राभूतम् । ग-विवक्षिता अपि च ग्रन्यपद्धतयः परमदुर्लभा परिणामसन्दरा श्वाभीष्टेभ्योविनयादिगुणकलितेभ्यः शिष्येभ्यो देश-कालो चित्येनीपनोयन्ते । सूर्य० सू० ६ वृत्ति० पत्र ७ का पूर्वभाग श्वेताम्बर परम्परा में चन्द्र-सूर्यप्रज्ञप्ति के अध्ययन आदि विभागों के लिए "प्राभूत" शब्द प्रयुक्त है। दिगम्बर परम्परा के कषायपाहुड आदि सिद्धान्त ग्रन्थों के लिए "पाहुड" शब्द के विभिन्न अर्थ। १-जिसके पदस्फुट-व्यक्त है वह "पाहुड कहा जाता है । २-जो प्रकृष्ट पुरुषोत्तम द्वारा आभृत-प्रस्थापित है वह "पाहुड' कहा जाता है । ३-जो प्रकृष्ट ज्ञानियों द्वारा आभृत-धारण किया गया है अथवा परम्परा से प्राप्त किया गया है वह "पाहुड', कहा जाता है । जैनेन्द्र सिद्धान्तकोष से उद्धत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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