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________________ अन्तकृद्दशा को विषय वस्तु : एक पुनर्विचार प्रो० सागरमल जैन अन्तकृद्दशा जैन अंग-आगमों का अष्टम अंगसूत्र है। स्थानांगसूत्र में इसे दश दशाओं में एक बताया गया है। अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु से सम्बन्धित निर्देश श्वेताम्बर आगम साहित्य में स्थानांग, समवायांग, नन्दीसूत्र में तथा दिगम्बर परम्परा में राजवातिक, धवला तथा जयधवला में उपलब्ध है। अन्तकृदशा का वर्तमान स्वरूप वर्तमान में जो अन्तकृद्दशा उपलब्ध है उसमें आठ वर्ग हैं। प्रथम वर्ग में गौतम, समुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, काम्पिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु ये दस अध्ययन उपलब्ध हैं। द्वितीय श्रुतस्कन्ध में आठ अध्ययन हैं इनके नाम हैं--अक्षोभ, सागर, समुद्र, हिमवन्त, अचल, धरन, पूरन और अभिचन्द्र। तृतीय वर्ग में निम्न तेरह अध्ययन हैं-(१) अनीयस कुमार, (२) अनन्तसेन कुमार, (३) अनिहत कुमार, (४) विद्वत् कुमार, (५) देवयश कुमार, (६) शत्रुसेन कुमार, (७) सारण कुमार, (८) गज कुमार, (९) सुमुख कुमार, (१०) दुर्मुख कुमार, (११) कूपक कुमार, (१२) दारुक कुमार, (१३) अनादृष्टि कुमार । इसी प्रकार चतुर्थ वर्ग में निम्न दस अध्ययन हैं(१) जालि कुमार, (२) मयालि कुमार, (३) उवयालि कुमार, (४) पुरुषसेन कुमार, (५) वारिषेण कुमार, (६) प्रद्युम्न कुमार, (७) शाम्ब कुमार (८) अनिरुद्ध कुमार, (९) सत्यनेमि कुमार और (१०) दृढनेमि कुमार । पंचम वर्ग में दस अध्ययन हैं जिनमें आठ कृष्ण की प्रधान पत्नियों और दो प्रद्युम्न की पत्नियों से सम्बन्धित हैं। प्रथम वर्ग से लेकर पांचवें वर्ग तक के अधिकांश व्यक्ति कृष्ण के परिवार से संबन्धित हैं और अरिष्टनेमि के शासन में हुए हैं। छठे, सातवें और आठवें वर्ग का सम्बन्ध महावीर के शासन से है। छठे वर्ग के निम्न १६ अध्ययन बताये गये हैं--(१) मकाई, (२) किंकम, (३) मुद्गरपाणि, (४) काश्यप, (५) क्षेमक (६) धृतिधर, (७) कैलाश, (८) हरिचन्दन, (९) वारत्त, (१०) सुदर्शन, (११) पुण्यभद्र, (१२) सुमनभद्र, (१३) सुप्रतिष्ठित, (१४) मेघकुमार, (१५) अतिमुक्त कुमार और (१६) अलक्क (अलक्ष्य) कुमार । सातवें वर्ग में १३ अध्ययनों के नाम निम्न हैं(१) नन्दा, (२) नन्दवती, (३) नन्दोत्तरा, (४) नन्दश्रेणिका, (५) मरुता, (६) सुमरुता, (७) महामरुता, (८) मरुद्देवा, (९) भद्रा, (१०) सुभद्रा, (११) सुजाता, (१२) सुमनायिका, (१३) भूतदत्ता । आठवें वर्ग में कालो, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुदर्शना, वोरकृष्णा, रामकृष्णा, कर्मसेनकृष्णा और महासेनकृष्णा इन दस श्रेणिक की पत्तियों का उल्लेख है। उपर्युक्त सम्पूर्ण विवरण को देखने से केवल किंकम और सुदर्शन ही ऐसे अध्याय हैं जो स्थानांग में उल्लिखित विवरण से नाम साम्य रखते हैं, शेष सारे नाम भिन्न हैं। अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु सम्बन्धी प्राचीन उल्लेख स्थानांग में हमें सर्वप्रथम अन्तकृद्दशा की विषयवस्तु का उल्लेख प्राप्त होता है। इसमें अन्तकृद्दशा के निम्न दस अध्ययन बताये गये हैं। नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त (रामपुत्त), सुदर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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