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________________ डॉ० शिव प्रसाद जैसा कि पूर्व में ही स्पष्ट किया जा चुका है, अभयसिंहसूरि के पश्चात् उनके शिष्यों अमरसिंहसूरि और सोमतिलकसूरि से आगमिकगच्छ की दो शाखायें अस्तित्व में आयीं । अमरसिंहसूर की शिष्यसंतति आगे चलकर धंधूकीया शाखा के नाम से जानी गयी । उसी प्रकार सोमतिलकसूरि की शिष्य परम्परा विडालंबीयाशाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई । २५२ मुनिसागरसूरि द्वारा रचित आगमिकगच्छपट्टावली में अभयसिंहसूरि के पश्चात् सोमतिलकसूरि से मुनिरत्नसूरि तक ७ आचार्यों का क्रम इस प्रकार मिलता है- सोमतिलकसूर सोमचंद्रसूरि गुणरत्नसूरि मुनिसिंहसूरि शीलरत्नसूरि आनन्दप्रभसूरि मुनिरत्नसूरि साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर इस पट्टावली के गुणरत्नसूरि और मुनिरत्नसूरि के अन्य शिष्यों के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त होती है । गजसिंहकुमाररास ' ( रचनाकाल वि० सं० १५१३ ) की प्रशस्ति में रचनाकार देवरत्नसूरि ने अपने गुरु गुणरत्नसूरि का ससम्मान उल्लेख किया है । इसी प्रकार मलयसुन्दरीरास ( रचनाकाल वि० सं० १५४३ ) और कथाबत्तीसी ( रचनाकाल वि० सं० १५५७ ) की प्रशस्तियों में रचनाकार ने अपने गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है मुनिसिंह सूरि मतिसागरसूरि उदयधर्मसूरि [ रचनाकार ] आगमिकगच्छीय उदयधर्मसूरि (द्वितीय) द्वारा रचित धर्मकल्पद्रुम की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपने गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है- Jain Education International १. मिश्र, शितिकंठ - हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास [ भाग - १ ] मरु-गूर्जर (वाराणसी १९९० ई० ) पृ० ४०० २. मिश्र, शितिकंठ, पूर्वोक्त, पृ० ३३४ और आगे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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