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________________ आगमिक गच्छ/प्राचीन त्रिस्तुतिक गच्छ का संक्षिप्त इतिहास २४७ भाषा में हैं। इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का सुन्दर परिचय दिया है, जो इस प्रकार है अमररत्नसूरि सोमरत्नसूरि कल्याणराजसूरि क्षमाकलश [सुन्दरराजारास एवं ललिताङ्गकुमाररास के कर्ता] ४-लघक्षेत्रसमासचौपाई—यह कृति आगमगच्छीय मतिसागरसूरि द्वारा वि०सं० १५९४ में पाटन नगरी में रची गयी है। इसकी भाषा मरु-गुर्जर है। रचना के प्रारम्भ और अन्त में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा की चर्चा की है, जो इस प्रकार है सोमरत्नसूरि गुणनिधानसूरि उदय रत्नसूरि गुणमेरुसूरि मतिसागरसूरि [रचनाकार अभिलेखीय साक्ष्य आगमिक गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित तीर्थङ्कर प्रतिमाओं पर वि०सं० १४२१ से वि०सं० १६८३ तक के लेख उत्कीर्ण हैं। इन प्रतिमालेखों के आधार पर इस गच्छ के कुछ मुनिजनों के पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं, जो इस प्रकार हैं १- अमरसिंहसूरि-इनके द्वारा वि०स० १४५१ से वि० स० १४७८ के मध्य प्रतिष्ठापित ७ प्रतिमा लेख उपलब्ध हैं, इनका विवरण इस प्रकार हैवि०सं० १४५१ ज्येष्ठ सुदि ४ रविवार १ प्रतिमा वि०सं० १४६२ वैशाख सुदि ३ वि०सं० १४६५ माघ सदि ३ रविवार वि०सं० १४७० तिथि विहीन वि०सं० १४७५ वि०सं० १४७६ चैत्र वदि १ शनिवार वि०सं० १४७८ वैशाख सुदि ३ गुरुवार १. देसाई, पूर्वोक्त पृ० ३३७ और आगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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