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________________ दशरथ गोंड २३९ सन्दर्भ भले ही संख्या में कम हों, वे सभी महत्त्वपूर्ण हैं, और श्रमण धर्म की प्राचीनता को सिद्ध करते हैं। अभी हाल तक यही मानने की प्रवृत्ति थी कि वैदिक यज्ञ परम्परा और पशु हिंसा के आलोचक होने के कारण इस परम्परा को अनिवार्यतः अनार्य और अवैदिक होना चाहिये । कभी-कभी आधुनिक विद्वान् इसी सूत्र से श्रमण परम्परा का सम्बन्ध सैन्धव संस्कृति से भी जोड़ते हैं। परन्तु अब इसके पुष्ट साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं कि श्रमण परम्परा भी वैदिक यज्ञ परम्परा से भिन्न परन्तु प्राचीन भारोपीय और भारतेरानी आर्य संस्कृति का ही एक अंग प्रतीत होती है। इस स्थिति में यह सहज कल्पनीय है कि अपने दीर्घ कालीन इतिहास में श्रमण परम्परा ने वास्तव में ऐसे अनेक ऋषियों को जन्म दिया हो जिनकी स्वतंत्र शिष्य परम्परा तो न विकसित हुई हो, परन्तु निजी उपलब्धि और उपदेशों की महत्ता की दृष्टि से जिनकी स्मृति सुरक्षित रही। बुद्ध और महावीर के युग के आस-पास जब श्रमण परम्परा ने विशिष्ट-विशिष्ट वर्ग या समुदाय का रूप ग्रहण किया, उस स्थिति में उपर्युक्त प्रकार के अनेक प्राचीन ऋषियों को प्रत्येक-बुद्ध की विशिष्ट कोटि में रख दिया गया। ऋषिभाषित की सामग्री और सामान्य रूप से जैन आगम के साक्ष्य से यह तो स्पष्ट आभास नहीं होता कि प्रत्येक-बुद्ध रूप इन अनेक प्राचीन ऋषियों के नाम और उपदेश के उदार भाव से स्मरण करने और सुरक्षित रखने के अतिरिक्त जैन परम्परा ने उसका और कोई विशिष्ट सदुपयोग किया हो । एक प्रकार से बौद्ध धर्म में भी प्रायः यही स्थिति लगती है, और जातक कथाओं में भी स्थान-स्थान पर बोधिसत्व से जुड़े होने के साथ भी प्रत्येक-बुद्ध प्रायः उनके प्रेरक मात्र हैं। परन्तु यह रोचक है कि प्रत्येक-बुद्धों की अवधारणा बाद के बौद्ध परम्परा में सर्वथा लुप्त नहीं हुई। न केवल आभिधार्मिक ग्रन्थों में बौद्ध सन्तों की कोटि में अर्हत् और सम्यक् सम्बुद्ध के साथ उनका प्रायः परिगणन किया गया", अपितु महायान द्वारा अपने बोधिसत्व आदर्श की तुलना में अर्हतों के साथ-साथ उनके आदर्श पर भी अत्यधिक स्वतंत्रता और संकीर्णता का आक्षेप किया गया। डी ५५/१० औरंगाबाद, वाराणसी-२२०१० १. श्रमण परम्परा के प्राचीन इतिहास के लिये मुख्य रूप से देखिए—पाण्डेय, गोविन्दचन्द्र : स्टडीज इन द ओरिजन्स ऑफ बुद्धिज्म, पृ० २५८ और आगे- और उन्हीं का दूसरा ग्रन्थ : बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० ४ और आगे । २. देखिए पाण्डेय- गोविन्दचन्द्र : स्टटीज इन द ओरिजन्व ऑफ बुद्धिज्म, पृ० २५ । और आगे तथा बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० ३ । ३. देखिए- प्रो. विश्वम्भर शरण पाठक के हाल ही में प्रकाशित दो महत्वपूर्ण शोधपत्र जो श्री राम गोयल के ग्रन्थ हिस्ट्री ऑफ इण्डियन बुद्धिज्म और सीताराम दूबे के ग्रन्थ बौद्ध संघ के प्रार म्भिक विकास का एक अध्ययन में पुरोवाक के रूप में प्रकाशित हैं। ४. देखिए पुग्गल-पअति (पी० टी० एस० संस्करण ) पृ० १४ और ७०। ५. उत्तर कालीन बौद्ध धर्म में प्रत्येक बुद्ध की स्थिति के सम्बन्ध में देखिए- नलिनाक्ष दत्त : ऐस्पेक्ट्स आँफ महायान बुद्धिज्म, पृ० ८० और आगे; हरदयाल : द बोधिसत्व डाक्ट्रीन इन बुद्धिस्ट संस्कृत लिटरेचर पृ० ३; भिक्षु संघरक्षित : ए सर्वे ऑफ बुद्धिज्म, पृ० ७९ २२२-२२३ और २४१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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