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________________ संडेरगच्छ का इतिहास २१५ आदि' ३ रचनायें वर्तमान में उपलब्ध हैं। सुमित्रचरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने जीवविचार विवरण; षटभाषास्तोत्र ( सटीक ); नन्दिसेणमुनिगीत; यशोभद्रसूरिप्रबन्ध; मेदपाटस्तवन आदि की भी रचना की थी। ये रचनायें आज अनुपलब्ध हैं। _ वि. सं. १५९७ में ईश्वरसूरि ( चतुर्थ ) के पश्चात वि. सं. १६५० में शान्तिसूरि के शिष्यों नयकुञ्जर और हंसराज द्वारा धर्मघोषगच्छीय राजवल्लभ पाठक द्वारा रचित भोजचरित्र की प्रतिलिपि तैयार करने का उल्लेख मिलता है। वि. सं. १६८९ का एक लेख, जो पार्श्वनाथजिनालय में स्थित पुण्डरीकस्वामी की मूर्ति पर उत्कीर्ण है, भी संडेरगच्छ से ही सम्बन्धित है। परन्तु इसमें प्रतिष्ठापक आचार्य का नाम नहीं मिलता है। इसके पश्चात वि. सं. १७२८ और वि. सं. १७३२ के प्राप्त अभिलेख भी सन्डेरगच्छ से ही सम्बन्धित हैं । इनका विवरण इस प्रकार है वि. सं. १७२८ वैशाख सुदि १४५ देहरी का लेख लूणवसही, आबू वि. सं. १७२८ वैशाख सुदि ११, देहरी का लेख, लूणवसही, आबू वि. सं. १७२८ वैशाख सुदि १५, देहरी का लेख, लूणवसही, आबू वि. सं. १७३२ वैशाख सुदि ७८, जैनमंदिर, छाणी इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि १६वीं शताब्दी (विक्रमी ) के पश्चात ही इस गच्छ का गौरवपूर्ण इतिहास समाप्त हो गया, तथापि १७वीं-१८वीं शताब्दी तक इसका स्वतन्त्र अस्तित्व बना रहा और बाद में यह तपागच्छ में विलीन हो गया। ( देखें-तालिका पृ० २१६-१६७ ) १. जैन गूर्जर कविओ ( द्वितीय संस्करण ), भाग १, पृ० २१९ २. वही, पृ० २१९ Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts. Muni Shree Punya Vijayjis Collection; Ed. A. P. Shah, Vol II, No-4936 ४. नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क १९६२ ५. मुनि जयन्तविजय, आबू, भाग २, लेखाङ्क ३०९ ६. वही, भाग २, लेखाङ्क २९३ ७. वही, भाग २, लेखाङ्क २९१ ८. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखाङ्क ५४० ९. त्रिपुटी महाराज-जेन परम्परानो इतिहास, भाग १, पृ० ५५८-६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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