SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संडेरगच्छ का इतिहास षट्पंचासिकास्तवक के वि० सं० १६५० में प्रतिलेखन को दाता प्रशस्ति' इस प्रशस्ति में आचार्यों की गुर्वावली न मिलकर उपाध्याय और उनके शिष्यों की गुर्वावली मिलती है और यही कारण है कि इसमें परम्परागत नाम नहीं मिलते हैं। सन्देहशतक की वि० सं० १७५० में तैयार की गयी प्रतिलिपि की दाता प्रशस्ति से भी इसी तथ्य को पुष्टि होती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि संडेरगच्छ में गच्छनायक आचार्यों को ही परम्परागतनाम दिये जाते थे, शेष मुनियों के वही नाम अन्त तक बने रहते थे जो उन्हें दीक्षा के समय दिये जाते थे। ___ संडेरगच्छीय आचार्यों की लम्बी परम्परा में सुमतिसूरि ( चतुर्थ ) के शिष्य शांतिसूरि (चतुर्थ ) ने वि. सं. १५५० में सागरदत्तरास और इनके शिष्य ईश्वरसूरि (पंचम) ने वि. सं. १५६१ में ललितांगचरित; वि. सं. १५६४ में श्रीपालचौपाई तथा इनके शिष्य धर्मसागर ने वि. सं. १५८७ में आरामनंदनचौपाई की रचना को। इनके सम्बन्ध में यथास्थान प्रकाश डाला गया है। यहाँ इन रचनाओं के सम्बन्ध में यही कहना अभीष्ट है कि इनकी प्रशस्ति में भी परम्परागत पट्टधर आचार्यों के नामोल्लेख के अतिरिक्त अन्य कोई सूचना नहीं मिलती, जिससे इस गच्छ के इतिहास पर विशेष प्रकाश डाला जा सके । संडेरगच्छोय आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों का विवरण संडेरगच्छ से सम्बन्धित सबसे प्राचीन उपलब्ध अभिलेख वि० सं० १०३० / ई० सन् ९८२ का है जो आज करेड़ा (प्राचीन करहेटक ) स्थित पार्श्वनाथ जिनालय में प्रतिष्ठापित पार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है । लेख इस प्रकार है (१) संवत् १०३९ (व)र्षे श्री संडेरक गच्छे श्री यशोभद्रसूरि सन्तानीय श्री श्यामा..... (?) चार्या....... (२) ........."प्र० भ० श्रीयशोभद्रसूरिभिः श्रीपार्श्वनाथ बिबं प्रतिष्ठितं ।। न ॥ पूर्व चन्द्रेण कारितं........ संडेरगच्छ के आदिम एवं महाप्रभावक आचार्य यशोभद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित एवं अद्यावधि एकमात्र उपलब्ध प्रतिमापर उत्कीर्ण यह लेख संडेरगच्छ का उल्लेख करने वाला प्रथम अभिलेख है। साहित्यक साक्ष्यों ( पट्टावलियों ) के आधार पर यशोभद्रसूरि का समय वि. सं. ९५७/ई० सन् मू० अन्तः-इति षट्पञ्चाशिकाटीका समाप्ता ।। ___श्रीबृहत्श्रीश्रीसंडेरगच्छे उपाध्या[य]श्रीधर्मरत्नशिष्यवा० श्रीसि(स)हजसुन्दरउपाध्या[य] श्रीजि[जयतिलक-पं० श्रीभावसुन्दर उपाध्या[य] श्रीक्षमामूर्तिउपाध्या[य] श्रीक्षमासुन्दरविजयराज्ये ग० श्रीसंयमवल्लभ-वा० श्रीआणन्दचन्द्र-वा० श्री न्या[ज्ञानसागर मु. सामलमु० देपा-जोवन्त-डङ्गासमस्तसाधुयुते उपाध्या[य] श्रीक्षमासुन्दर-शिष्यचेलानेतालिखितं, सांप्रतं राणाश्रीउदयसङ्घराज्ये उटालाग्रामे लिखितम् । शाह, पूर्वोक्त, भाग ३, क्रमांङ्क ७२६१ । वही, भाग १, क्रमाङ्क ३२६९. नाहर, पूरनचन्द-जैन लेख संग्रह, भाग २, लेखाङ्क १९४८ २. ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy