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________________ ( १३ ) संस्था के सलाहकार के रूप में लगभग १० वर्षों तक कार्य करते रहे। यह उनकी असाधारण विद्वत्ता, संगठन शक्ति का परिणाम है। १९६६-६७ में दलसुख भाई १६ माह के लिए टोरेन्टो यूनिवर्सिटी, कनाडा में बौद्ध दर्शन के अध्यापक नियुक्त होकर गये। इसके पश्चात् बलिन यूनिर्वसिटी के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में गये और वहाँ व्याख्यान दिये । अहमदाबाद में रहते हुए दलसुख भाई अनेक शिक्षण संस्थाओं के साथ सम्बद्ध हुए। गुजरात विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय, जबलपुर वि० वि०, हैदराबाद वि०वि०, तिरुपति विश्वविद्यालय आदि अनेक शिक्षण संस्थाओं के वे सदस्य रहे हैं। दलसुख भाई की सफलता में उनके निर्मल जीवन एवं सौम्य व्यक्तित्त्व का पूरा सहयोग रहा है। उनकी निरभिमानी सरल व सहज स्वभाव तथा सहयोगी वृत्ति के कारण उनके सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति चाहे वह छोटा हो या बड़ा, उनका प्रशंसक बन जाता है। वस्तुतः पंडित जी जैसे बाहर से शुद्ध विचार वाले, सरल स्वभावी, निरभिमानी हैं वैसे ही आपका हृदय भी विशुद्ध है । उनका किसी से कभी कोई विरोध नहीं होता और विषम परिस्थति में भी वे सहज और प्रसन्नचित्त रहते हैं। ऐसे सौम्य सरस्वती पुत्र को वन्दन कर कौन अपने को गौरवान्वित न समझेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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