SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुजरात से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण जैन प्रतिमायें प्रमोद कुमार त्रिवेदी १९७७ में लगभग एक दर्जन धातु निर्मित कलाकृतियाँ भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, पश्चिमी मण्डल, बडोदरा के अधीक्षक, पुरातत्त्वज्ञ डॉ० चे० मार्गबन्धु द्वारा अधिकृत की गयी थीं। उन्होंने लेखक को उक्त कृतियाँ परीक्षण एवं अध्ययन हेतु प्रदान की तथा प्रस्तुत लेख तैयार करने का परामर्श दिया। यद्यपि इन कृतियों का मूल स्थान निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, किन्तु शैलीगत विशिष्टताओं के आधार पर विवेचनाधीन प्रतिमायें गुजरात में निर्मित प्रतीत होती हैं। उपरोक्त समूह में उत्कीर्ण एवं अलिखित श्वेताम्बर एवं दिगम्बर सम्प्रदाय की प्रतिमायें, चौमुखी, दीप-लक्ष्मी, गजारोही, गरुड़ एवं राष्ट्रकूट शैली की छापयुक्त किन्तु पर्याप्त अर्वाचीन कमल-धारिणी का एक नमना भी सम्मलित है। तिथि की दृष्टि से इनका काल बारहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य का है । प्रस्तुत लेख में मात्र उत्कीर्ण एवं चुनी हुई कृतियों का ही विवेचन किया जा रहा है। १. महावीर का चतुर्विशतिपट्ट (कॉस्य, १७.०५ से० मी० x १०.०५ से० मी०) भगवान् महावीर ध्यानमग्न, पद्मासन मुद्रा में एक उच्च त्रिरथ, सिंहासन पर रखी सादी पीठिका पर आसन्न हैं। मूल-नायक के सिर पर उष्णीश है, चेहरा अण्डाकार, नेत्र आयताकार एवं 'प्रलम्ब कर्ण पाश' हैं। वक्षः स्थल पर 'श्रीवत्स' लांछन रजत उरेकित है। सिर के पीछे भामण्डल तथा ऊपर कलशमय छत्र है। उनके पार्श्व में दोनों ओर एक तीर्थंकर कायोत्सर्ग मुद्रा में अंकित हैं, जिनके पैरों के मध्य वस्त्रों का अंकन विवेचनाधीन कृति के श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित होने की पुष्टि करता है। माणिक्य-माल की इकहरी सीमान्त रेखा के शीर्षस्थ भाग पर मयूर-युग्म से युक्त मंगल-कलश है, जिसके ठीक नीचे छत्राच्छादित एवं कायोत्सर्ग मुद्रा में पार्श्व तीर्थंकरों से युक्त एक अन्य तीर्थंकर ध्यान-मुद्रा में निरूपित हैं। मूल-नायक सहित सम्पूर्ण परिकर पर अंकित तीर्थंकरों की संख्या कुल चौबीस है। सिंहासन के सम्मुख संभवतया दो मृगों के मध्य एक धर्मचक्र एवं नवग्रहों का गढ़न प्रतीक रूप में किया गया है । (चित्र १-क) प्रतिमा के पृष्ठ भाग पर अंकित लेख के अनुसार इसकी प्रतिष्ठापना सन् ११५० में हुई थी। देवनागरी लिपि में उत्कीर्ण लेख के अनुसार प्रतिमा का प्रतिष्ठापन कार्य शान्तिप्रभ-सूरि द्वारा संवत् १२०७ (ई० ११५०) में वैशाख सुदि पंचमी, शुक्रवार के दिन श्रेष्टि वढपाल, श्रेष्ठि जमदेव एवं पुत्र सालदेव के भाई प्रणसिंह के कल्याणार्थ की गयी थी । (चित्र १-ख) उत्कीर्ण लेख इस प्रकार है संवत् १२०७ वर्षे माघ सुदि ५ शुक्रे श्रे० वढपाल श्रे० (?) जमदेवाभ्या श्रेयार्थे पुत्र साल देवेन भातृ प्रनसिंह समेतेन चतुर्विंशतिपट्टकारितः प्रतिष्ठित बहदहछीयैः श्रीशान्तिप्रभसूरिभिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy