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________________ जैनतंत्र साधना में सरस्वती १६५ कभी-कभी सरस्वती परिवार के भी विस्तृत और रोचक सन्दर्भ हैं। बप्पभट्टिसूरिकृत सरस्वतीकल्प की यंत्र पूजा में सरस्वती मण्डल या यंत्र में मोहा, नन्दा, भद्रा, जया, विजया, अपराजिता, जम्भा, स्तम्भा, १६ महाविद्याओं (रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि), अष्टदिक्पालों, अष्टमातृकाओं' तथा अष्टभैरवों के पूजन के भी उल्लेख हैं।२ बप्पभट्टि और मल्लिषेण ने सरस्वती-यंत्र-पूजा-विधि में अष्ट, द्वादश, षोडश, चौसठ, १०८ तथा एक हजार पंखुड़ियों वाले पद्म पर बनाये जाने वाले कुछ यंत्रों, होमकुण्ड में सम्पन्न विभिन्न तांत्रिक क्रियाओं एवं दस हजार, बारह हजार, एक लाख तथा इससे भी अधिक बार सरस्वती मंत्रों के जाप की बात बताई है। सरस्वतीकल्प में इन तांत्रिक साधनाओं को सिद्धसारस्वत बीज कहा गया है। __बप्पभट्टिसूरिकृत शारदास्तोत्र में ही सर्वप्रथम सरस्वती से सम्बन्धित मंत्र (ओम्, ह्रीम्, क्लीम्, ब्लिम् श्रीहसकल ह्रीम् ऐं नमो) का उल्लेख हुआ है ।' दस हजार होमों के साथ एक लाख बार इस मंत्र का जाप करने से साधक को अद्वितीय विद्वत्ता प्राप्त होती है। इसी ग्रन्थ में आगे यह भी उल्लेख है कि सरस्वती की साधना से साधक चातुर्य-चिन्तामणि बन जाता है।' विद्यानुवादांगजिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय में सरस्वती से सम्बन्धित एक अन्य मंत्र (ओम् ऐं हसक्लीम् वाग्देव्यै नमः) का उल्लेख मिलता है। जिनप्रभसूरि के शारदास्तवन में वर्णित सारस्वत मंत्र इस प्रकार है : 'ओम् ऐं ह्रीम् श्रीम् वद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वती तुभ्यम् नमः' ।' कुण्डलिनीयोग के ज्ञाता बप्पट्टि के अनुसार सारस्वत मंत्रोच्चारण महाप्रज्ञाबुद्धि, वारिसद्धि, वचनसिद्धि तथा काव्यसिद्धि जैसी शक्तियों को देने वाला है।' मल्लिषेण ने भारतीकल्प में 'ओम् ह्रीम् श्रीम् वद वद वाग्वादिनी स्वाहा' को सरस्वती का मूलमंत्र बताया है ।'° मल्लिषेण के अनुसार होम सहित १२ हजार बार इसके मंत्रोच्चार से साधक सरस्वती के समान (वागीश्वरी सम) हो जाता है।" मल्लिषेण ने सारस्वत शक्ति की प्राप्ति से १. ब्रह्माणी, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, वैष्णवी, चामुण्डा, चण्डिका और महालक्ष्मी-सरस्वती कल्प, पृ० ७३. २. सरस्वतीकल्प, परिशिष्ट १२-पद्मावतीकल्प, पृ० ६९-७६. ३. भैरवपद्यावतीकल्प के परिशिष्ट ११ और १२ में यंत्रपूजा का विस्तृत उल्लेख हुआ है : पृ० ६१-७८. ४. चतुर्विशतिका के परिशिष्ट-शारदास्तोत्र के श्लोक १० में (पृ० १८३) सरस्वती का बीजमंत्र दिया गया है। ५. शारदास्तोत्र, श्लोक १०. ६. न स्यात् कः स्फुटवृत्तचक्ररचनाचातुर्यचिन्तामणिः ।।-सरस्वतीकल्प, श्लोक ६. ७. यू० पी० शाह, 'आइकनोग्राफी ऑव सरस्वती', पृ० २०७, पा० टि० ५७. ८. मोहनलाल भगवानदास झवेरी, पूर्व निर्दिष्ट, पृ. ३२२. ९. हेमचन्द्र ने अपने शिष्यों की बौद्धिक शक्ति में वृद्धि के लिए सारस्वतमंत्र के साथ चन्द्रचन्दन गुटी के भक्षण का विधान किया था। सरस्वतीकल्प, पृ० ७८. १०. भारतीकल्प, पु० ६२. ११. भारतीकल्प, श्लोक १५, पृ० ६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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