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________________ १५० डा० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी एवं डा० कमलगिरि मिलते हैं ।' प्रस्तुत ग्रन्थ विद्यादेवियों के प्रारम्भिक विकास अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । राम, लक्ष्मण, रावण एवं ग्रन्थ के अन्य पात्रों द्वारा युद्धादि के समय अनेकशः विद्याओं की प्राप्ति के लिए पूजन आदि के सन्दर्भ मिलते हैं । जैन धर्म पर तन्त्र के प्रभाव के अध्ययन की दृष्टि से भी ग्रन्थ की कुछ सामग्री महत्त्वपूर्ण है । राम और लक्ष्मण द्वारा प्राप्त की गई गरुडा और केसरी विद्याओं' से ही कालान्तर में क्रमशः अप्रतिचक्रा और महामानसी विद्याओं का स्वरूप विकसित हुआ । पउमचरिय में यक्ष-यक्षियों के उल्लेख बहुत कम हैं । केवल प्राचीन परम्परा के पूर्णभद्र एवं माणिभद्र यक्षों के ही उल्लेख हैं । इनके अतिरिक्त विनायकपुषण यक्ष, ४ महायक्ष अनादृत तथा सुनामा यक्षी " के भी उल्लेख मिलते हैं । इस ग्रन्थ में प्राचीन परम्परा की बहुपुत्रिका या अंबिका यक्षी तथा सर्वानुभूति या कुबेर यक्ष के उल्लेख का अभाव आश्चर्यजनक है। * धृति, कीर्ति, बुद्धि, एवं लक्ष्मी नाम की देवियों का भी नामोल्लेख हुआ है विशेषतः अंगविज्जा एवं व्याख्या - प्रज्ञप्ति में हमें लोकपूजन में प्रचलित देवताओं की विस्तृत सूची मिलती है, किन्तु पउमचरिय में नाग-नागो, प्रेत, पितर, स्कन्द, विशाख तथा इसी प्रकार के अन्य किसी देवता का कोई सन्दर्भ नहीं मिलता । पउमचरिय में वस्तुतः यक्ष-यक्षी एवं लोकोपासना में प्रचलित देवों के स्थान पर विद्या देवियों को अधिक महत्त्व दिया गया है । । एक स्थल पर ही, श्री, पूर्ववर्ती आगम ग्रन्थों, पउमचरिय में राम के साथ हल और मूसल तथा लक्ष्मण के साथ चक्र एवं गदा के उल्लेख विचारणीय हैं । हल-मूसल एवं चक्र-गदा क्रमशः बलराम और कृष्ण-वासुदेव के आयुध हैं, जो परम्परा से राम और लक्ष्मण के पश्चात् कालीन हैं । रामकथा के प्रसंग में मथुरा एवं कृष्णलीला से सम्बन्धित कुछ अन्य स्थलों का उल्लेख भी आश्चर्य का विषय है । पउमचरिय के अन्त में यह भी उल्लेख है कि पूर्व ग्रन्थों में आये हुए नारायण तथा हलधर के चरितों को सुनकर ही विमलसूरि ने राघव चरित की रचना की। कई स्थलों पर राम को पद्म, हलधर, हलायुध और लक्ष्मण को १. पउमचरिय ८.२०; ९.८७-८९, १०.४६-४७, ५३; ११.३ ॥ २. लद्धाओ गरुड - केस रिविज्जाओ राम चक्कीणं ॥ पउमचरिय ७८.४२ ३. पउमचरिय ६७.३५,३७,४०, ४८ ४. पउमचरिय ३५.२२-२६; ७.१५० ५. पउमचरिय ३५.३४ ६. पउमचरिय ३.५९ ७. पत्तो हलं समुसलं, रामो चक्कं च लक्खणो धीरो । - पउमचरिय ७८.४१; "देइ गयं लक्खणस्स सुरवरो । दिव्वं हलं च मुसलं, पउमस्स वि तं पणामेइ || Jain Education International पउमचरिय ५९.८६ ८. सीसेण तस्स रइयं राहवचरियं तु सूरिविमलेणं । सोऊणं नारायण सीरिचरियाई ॥ पुव्व गए, - पउमचरिय ११८.११८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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