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________________ १४२ अनुपम जैन एवं सुरेशचन्द्र अग्रवाल गणितसार संग्रह में छठा अध्याय मिश्रक व्यवहार प्रकरण है, जिसमें पंचराशिक, वृद्धिविधान, विविध कुट्टीकार आदि है। जबकि चचित कृति में वर्ग संकलितादि व्यवहार है। इसमें निम्न १३ सूत्रों को उदाहरण सहित समझाया गया है (१) वर्ग संकलितानयन सूत्रं । (२) धन संकलितानयन सूत्रं । (३) एकवारादिसंकलितधनानयन सूत्रं । (४) सर्वधनानयने सूत्रद्वयं । (५) उत्तरोत्तरचयभवसंकलितधनानयन सूत्रं । (६) उभयान्तादागत पुरुषद्वयसंयोगानयन सूत्रं । (७) वणिक्करस्थितधनानयन सूत्रं । (८) समुद्र मध्ये १-२-३ । (९) छेदोशशेष जातो करणसूत्रं । (१०) करण सूत्र त्रयम् । (११) गुणगुण्यमिधे सतिगुणगुण्यानयनसूत्रं । (१२) बाहुकरणानयनसूत्रं । (१३) व्यासाद्यानयनसूत्र । उपरांत १ पत्र में संदृष्टि का विषय चचित है। "वर्ग संकलितादिनयनसूत्र' नामक इस प्रकरण का प्रारम्भ निम्न प्रकार से हुआ है.--- "श्री वीतरागाय नमः (६) छत्तीसमेतेन सकल ८, भिन्न ८, भिन्न जाति ६, प्रकीर्णक १०, त्रैराशिक ४, इत्ता ३६ नू छत्तीस में बुटु वीराचार्यरुपेल्गणितवनु माधव चन्द्र त्रैवेद्याचार्यरू शोध सिदरामि शोध्य सार संग्रहमेनिसकोंबुटु । वर्ग संकलितानयन सूत्र" । भावार्थ यह है-"म० जिनेन्द्र देव (तीर्थंकर) को नमस्कार है। इस छत्तीसी ग्रंथ में ८ परिकर्म, ८ परिकर्म भिन्नों पर, ६ भिन्न जातियां, १० प्रकीर्णक (भिन्नों पर आधारित प्रश्न). ४ त्रैराशिक इस प्रकार कुल ३६ विषयों की चर्चा है। विद्वान् (महा) वीराचार्य द्वारा पहले कहे गये (गणित) सारसंग्रह को शोध करके माधवचन्द्र विद्य ने इसकी रचना की। कन्नड़ शब्द, पेल्हगणित-कहे गये, बुन्टु-विद्वान् । उपरांत पूर्व लिखित १३ सूत्रों की चर्चा के बाद अंक संदष्टि के अन्तर्गत जैन साहित्य की परम्परा में बहुतायत से पाये जाने वाले ३४ के Magic Square का निर्माण किया गया है। or w १२ १० ะ * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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