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________________ ८२ डा० सुदर्शन लाल जैन पूर्वगत-९५ करोड ५० लाख और ५ पदों में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य आदि का वर्णन है। उत्पाद पूर्व आदि १४ पूर्वी की विषयवस्तु का वर्णन प्रायः तत्त्वार्थवार्तिक से मिलता है परन्तु यहाँ विस्तार से कथन है तथा पदादि की संख्या का भी उल्लेख है । चूलिका-जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता के भेद से चूलिका के ५ भेद हैं। (१) जलगता में जलगमन और जलस्तम्भन के कारणभूत मन्त्र, तन्त्र और तपश्चर्या आदि का वर्णन है। (२) स्थलगता में भूमिगमन के कारणभूत मन्त्र, तन्त्र और तपश्चर्या आदि का वर्णन है। वास्तुविद्या और भूमिसम्बन्धी शुभाशुभ कारणों का भी वर्णन है। (३) मायागता में इन्द्रजाल आदि का वर्णन है। (४) रूपगता में सिंह, घोड़ा, हरिण आदि के आकाररूप से परिणमन करने के कारणभूत मन्त्र, तन्त्र और तपश्चर्या का वर्णन है। चित्रकर्म, काष्ठ, लेप्यकर्म, लेनकर्म आदि के लक्षणों का भी वर्णन है। (५) आकाशगता में आकाशगमन के कारणभूत मन्त्र, तन्त्र और तपश्चरण का वर्णन है। सभी चूलिकाओं का पद-प्रमाण २०९८९२००४५ = १०४९४६००० है। ३. जयधवला में'-दृष्टिवाद नाम के १२वें अङ्गप्रविष्ट में ५ अर्थाधिकार हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका। परिकर्म के ५ अर्थाधिकार हैं-चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति । सूत्र में ८८ अर्थाधिकार हैं परन्तु उनके नाम ज्ञात नहीं हैं क्योंकि वर्तमान में उनके विशिष्ट उपदेश का अभाव है। प्रथमानुयोग में २४ अर्थाधिकार हैं क्योंकि २४ तीर्थङ्करों के पुराणों में सभी पुराणों का अन्तर्भाव हो जाता है। चूलिका में ५ अर्थाधिकार हैं-जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता।" पूर्वगत के १४ अर्थाधिकार हैं-उत्पादपूर्व आदि धवलावत् । प्रत्येक पूर्व के क्रमशः १०, १४, ८, १८, १२, १२, १६, २०, ३०, १५, १०, १०, १०, १० वस्तुएँ ( महाधिकार ) हैं। प्रत्येक वस्तु में २०.२० प्राभूत (अवान्तर अधिकार) हैं और प्रत्येक प्राभूत में २४.२४ अनुयोगद्वार हैं। पृ० २३ पर यह लिखा है कि १४ विद्यास्थानों ( १४ पूर्वो) के विषय का प्ररूपण जानकर कर लेना चाहिए। परन्तु पृष्ठ १२८-१३६ पर इनके विषय का प्ररूपण किया गया है जो प्रायः धवला से मिलता है । ४. अंगप्रज्ञप्ति में - इसमें ३६३ मिथ्यावादियों की दृष्टियों का निराकरण होने से इसे दृष्टिवाद कहा गया है। पदों की संख्या १०८६८५६००५ है । दृष्टिवाद के ५ प्रकार हैं-परिकर्म, सूत्र, पूर्व, प्रथमानुयोग और चूलिका। यद्यपि यहाँ पर पूर्व को प्रथमानुयोग के पहले लिखा है परन्तु विषय-विवेचन करते समय पूर्वो के विषय का विवेचन प्रथमानुयोग के बाद किया है। इसमें सूत्र के ८८ लाख पद कहे हैं तथा इसे मिथ्यादृष्टियों के मतों का विवेचक कहा है। कालवाद, ईश्वरवाद, नियतिवाद आदि को नयवाद कहा है । इसका आधार धवला और जयधवला है। १. जयधवला गाथा ?, पृ० २३, १२०-१३८ । २. वही पृ० १३७ । ३. विस्तार के लिए देखें, वही, पृ. १२६ । ४. वही पृ० १२०-१२८ । ५. एदेसि चोदसविज्जाटाणाणं विसयपरूवणा जाणिय कायव्वा । --जयधवला गाथा १, पृ० २३ । ६. अंगप्रज्ञप्ति गाथा,७१-७६ तथा आगे भी, पृ० २७१-३०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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