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________________ ७८ डा० सुदर्शन लाल जैन मतानुसारी हैं। इस प्रकार ये सातों परिकर्म पूर्वापर भेदों की अपेक्षा ८३ (१४ + १४ + ११ + ११ + ११+११ + ११) होते हैं। (आ) सूत्र-ये ८८ होते हैं। जैसे-ऋजुक, परिणतापरिणत, बहुभंगिक, विजयचर्या, अनन्तर, परम्पर, समान, संजूह (संयूथ), संभिन्न, अहाच्चय, सौवस्तिक, नन्द्यावर्त, बहुल, पृष्टापृष्ट, व्यावृत्त, एवंभूत, द्वयावर्त, वर्तमानात्मक, समभिरूढ, सर्वतोभद्र, पणाम (पण्णास) और दुष्प्रतिग्रह । ये २२ सूत्र स्वसमयसूत्रपरिपाटी में छिन्नच्छेदनयिक हैं। ये ही २२ सूत्र आजीविका सूत्र परिपाटी से अच्छिन्नच्छेदनयिक हैं। ये ही २२ सूत्र त्रैराशिक सूत्र परिपाटी से त्रिकनयिक हैं और ये ही २२ सूत्र स्वसमय सूत्र परिपाटी से चतुष्कनयिक हैं। इस तरह कुल मिलाकर २२ x ४ = ८८ भेद सूत्र के हैं। (इ) पूर्वगत-इसके १४ प्रकार हैं-१. उत्पादपूर्व, २. अग्रायणोयपूर्व, ३. वीर्यप्रवादपूर्व, ४. अस्तिनास्तिपूर्व, ५. ज्ञानप्रवादपूर्व, ६. सत्यप्रवादपूर्व, ७. आत्मप्रवादपूर्व, ८. कर्मप्रवादपूर्व, ९. प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व, १०. विद्यानुप्रवादपूर्व, ११. अबन्ध्यपूर्व, १२. प्राणायुपूर्व, १३. क्रियाविशालपूर्व और १४. लोकबिन्दुसारपूर्व । पूर्वो की वस्तुएँ और चूलिकायें निम्न प्रकार हैं पूर्व क्रमाङ्क श्वे० वस्तु दिग० वस्तु श्वे० चूलिका दिग० चूलिका م له سه × م م م 22222222222 م م ه ه ه ه ه नोट-प्रथम ४ पूर्वो की ही श्वे० में चूलिकाएँ मानी गई हैं, शेष की नहीं। दिग० में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। (ई) अनुयोग-यह दो प्रकार का है-(क) मूलप्रथमानुयोग-इसमें अर्हतों के पूर्वभव, देवलोक गमन, देवायु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिविका, प्रव्रज्या, तप, भक्त (आहार) केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, तीर्थप्रवर्तन, संहनन, संस्थान शरीरउच्चता, आयु, शिष्यगण, गणधर, आर्या, प्रवर्तिनी, चतुर्विध संघ-परिमाण, केवलिजिन, मनःपर्ययज्ञानी, अवधिज्ञानी, सम्यक् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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