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________________ ७२ डा० सुदर्शन लाल जैन ३ वर्ग, ३ उद्देशनकाल, ३ समुद्देशनकाल तथा संख्यात सहस्र पद हैं। शेष वाचनादि का कथन आचाराङ्गवत् है। ४. विधिमार्गप्रपा में'-इसमें १ श्रुतस्कन्ध ओर ३ वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग में क्रमशः १०, १३ और १० अध्ययन हैं । जालि आदि अध्ययनों के नाम हैं। (ख) दिगम्बर ग्रन्थों में १. तत्वार्थवातिक में-देवों का उपपाद जन्म होता है। विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि ये पांच अनुत्तर देवों के विमान हैं । प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में अनेक प्रकार के दारुण उपसर्गों को सहनकर पूर्वोक्त अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले १०-१० मुनियों का इसमें वर्णन होने से इसे अनुत्तरौपपादिक कहते हैं। महावीर के तीर्थ के १० अनुत्तरौपपातिक हैं-ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कार्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र । अथवा अनुत्तरौपपादिकों की दशा, आयु, विक्रिया आदि का इसमें वर्णन है। २. धवला में...-इसमें ९२४४००० पद हैं, जिनमें प्रत्येक तीर्थङ्कर के तीर्थ में उत्पन्न होने वाले १०-१० अनुत्तरोपपादिकों का वर्णन है। महावीर के तीर्थ में उत्पन्न होने वाले १० अनुत्तरीपपादिकों के नाम 'उक्तं च तत्त्वार्थभाष्ये' कहकर तत्त्वार्थभाष्यानुसार दिए हैं। ३. जयधवला में इसमें चौबोस तीर्थंकरों के तीर्थ में चार प्रकार के दारुण उपसर्ग सहनकर अनुत्तर विमान को प्राप्त हुए १०-१० मुनिवरों का वर्णन है। ४. अङ्गप्रज्ञप्ति में-इसमें ९२४४००० पदों के द्वारा प्रत्येक तीर्थंकर के तीर्थ में उत्पन्न १०-१० अनुत्तरोपपादिकों का वर्णन है । वर्धमान तीर्थंकर के तीर्थ के १० अनुत्तरौपपादिक मुनि हैंऋजुदास, शालिभद्र, सुनक्षत्र, अभय, धन्य, वारिषेण, नन्दन, नन्द, चिलातपुत्र और कार्तिकेय । (ग) वर्तमान रूप उपपाद जन्म वाले देव औपपातिक कहलाते हैं। बिजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि के वैमानिक देव अनुत्तर (श्रेष्ठ) कहलाते हैं। अतः जो उपपाद जन्म से अनुत्तरों में उत्पन्न होते हैं, उन्हें अनुत्तरोपपातिक कहते हैं। इस तरह इसमें अनुत्तरों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों की दशा का वर्णन हैं। इसके तीन वर्ग हैं जिनमें ३३ अध्ययन हैं प्रथम वर्ग-जालि, मयालि, उपजालि, पुरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदन्त, लष्टदन्त, वेहल्ल, वेहायस और अभयकुमार से सम्बन्धित १० अध्ययन हैं। द्वितीय वर्ग-दीर्घसेन, महासेन, लष्टदन्त, गढदन्त, शुद्धदन्त, हल्ल, द्रुम, द्रुमसेन, महाद्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंहसेन और पुष्पसेन से सम्बन्धित १३ अध्ययन हैं । तृतीय वर्ग-धन्यकुमार, सुनक्षत्रकुमार, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र, चन्द्रिक, पृष्टिमातृक, पेढालपुत्र, पोट्टिल्ल और वेहल्ल से सम्बन्धित १० अध्ययन हैं। १. विधिमार्गप्रपा, पृ० ५६. २. तत्त्वार्थ० १.२०, पृ० ७३. ३. धवला १.१.२, पृ० १०४-१०५ । ४. जयधवला गाथा १, पृ० ११९ । अङ्गप्रज्ञप्ति गाथा ५२-५५, पृ० २६७-२६८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012017
Book TitleAspect of Jainology Part 3 Pandita Dalsukh Malvaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1991
Total Pages572
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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