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________________ ब्रह्मशान्ति यक्ष १२७ ब्रह्मशान्ति यक्ष विद्यमान थे।' पाल्हणपुत्र के आबुरास (सं० १२८९ = ई० १२३३) में भी मोढेरा (महेसाणा, उ० गुजरात) में ब्रह्मशान्ति यक्ष के पूजन का उल्लेख है। घाणेराव (पाली, राजस्थान) के महावीर मन्दिर (१० वीं शती ई०), कुम्भारिया (बनासकांठा, गुजरात) के महावीर और शान्तिनाथ मन्दिरों (११वीं शती ई०), सेवाणी (पाली, राजस्थान) के महावीर मन्दिर (११ वीं शती ई०), देलवाड़ा (सिरोही, राजस्थान) के विमलवसही (रङ्गमण्डप-भ्रमिका-१२वीं शती उत्तरार्ध ई०) और लूणवसही (१२३१ ई०) एवं ओसियां (जोधपुर, राजस्थान) की पूर्वी जैन देवकुलिका (११ वीं शती ई०) की ब्रह्मशान्ति यक्ष की मूर्तियाँ भी १०वीं से १३वीं शती ई० के मध्य श्वेताम्बर स्थलों पर ब्रह्मशान्ति की लोकप्रियता की साक्षी हैं। .. निर्वाणकलिका में जटामुकुट, पादुका एवं उपवीत से शोभित, बड़े एवं तीक्ष्ण दांतों तथा भयङ्कर दर्शन वाले ब्रह्मशान्ति को चतुर्भुज कहा गया है। भद्रासन पर विराजमान यक्ष के दक्षिण करों में अक्षमाला और दण्ड तथा वाम हस्तों में छत्र और कमण्डलु दरशाया गया है। शोभनमुनि की स्तुति-चतुविशतिका में भी ब्रह्मशान्ति का चतुर्भुज स्वरूप ही विवेचित है । यक्ष के करों के आयुध निर्वाणकलिका के ही समान हैं ।३।। घाणेराव के महावीर मन्दिर की चतुर्भुज मूर्ति (दक्षिण का वेदिबन्ध) ब्रह्मशान्ति यक्ष की ज्ञात मूर्तियों में प्राचीनतम है। यक्ष के हाथों में वरदाक्ष, चक्राकार पद्म, छत्र और जलपात्र हैं। किश्चित् घटोदर एवं श्मश्रु और जटामुकुट से युक्त ब्रह्मशान्ति ललितमुद्रा में पद्म पर आसीन हैं। ओसियां के महावीर मन्दिर के समीप की पूर्वी जैन देवकुलिका (दक्षिण का वेदिबन्ध) पर भी चतुर्भुज ब्रह्मशान्ति को मूर्ति है (चित्र १)। श्मश्रु और जटाजूट से शोभित तथा किश्चित् घटोदर १. विविधतीर्थ कल्प, पृ० २९, लाइन २१-२३ । २. ब्रह्मशान्ति पिंगवर्ण दंष्ट्राकरालं जटामुकुटमण्डित पादुकारूढं भद्रासनस्थितमुपवीतालंकृतस्कन्धं चतुर्भुजं अक्षसूत्रदण्डकान्वितदक्षिणपाणि कुण्डिकाछत्रालंकृतवामपाणिं चेति ॥ -निर्वाणकलिका २१.१। ( सम्पा० मोहनलाल भगवानदास, मुनि श्रीमोहनलालजी जैन ग्रन्थमाला ५, बम्बई, १९२६, पृ० ३८) ३. दण्डच्छत्रकमण्डलूनि कलयन् स ब्रह्मशान्तिः क्रियात् सन्त्यज्यानि शमी क्षणेन शमिनो मक्ताक्षमाली हितम् ॥ तप्ताष्टापदपिण्डपिंगलरुचिर्योऽधारयन्मढतां संत्यज्यानिशमीक्षणेन शमिनो मुक्ताक्षमालीहितम् ।। -स्तुतिचतुर्विशतिका १६. ४ । ( सम्पा० एच० आर० कापडिया, बम्बई, १९२७ ). ४. इस लेख में यक्ष के हाथों के आयुधों की गणना निचले दाहिने हाथ से प्रारम्भ करके घड़ी की सूई की गति के क्रम में की गयी है। ५. द्रष्टव्य, ढाकी, एम० ए०, “सम अर्ली जैन टेम्पल्स् इन वेस्टर्न इण्डिया", श्री महावीर जैन विद्यालय गोल्डेन जुबिली वाल्यूम, बम्बई, १९६८, पृ० ३३२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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