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________________ अञ्चलगच्छीय आचार्यमेरुतुङ्ग एवं उनका जैनमेघदूतकाव्य रविशंकर मिश्र श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय में अनेक गच्छ प्रचलित हैं, जिनमें चौरासी गच्छों की मान्यता बहुत प्राचीन है ।' पाश्चात्य विद्वान् डा० बहूलर ने भी चौरासी गच्छों की मान्यता को स्वीकार किया हैAbout the middle of the tenth century there flourished a Jalna high priest named Uddyotana, with whose pupils the eighty four gachhas Originated. This number is still spoken of by the Jainas, but the lists that have been hitherto published are very discordant." परन्तु वर्तमान में खरतरगच्छ, तपागच्छ, अञ्चलगच्छ आदि गच्छ ही प्रमुख हैं । इन गच्छों अञ्च गच्छ का अपना इतिहास है। इस गच्छ ने न केवल जैन संघ के इतिहास को उज्ज्वल किया है, बल्कि अपनी बौद्धिक प्रखरता एवं ज्ञान- गाम्भीर्यता से भारतीय साहित्य को एक अनुपम देन दी है । इस गच्छ के इतिहास - सङ्कलन में सहायभूत होने वाली विपुल साधन-सामग्री यतस्ततः विनष्टप्राय ही है । मात्र इस गच्छ से सम्बन्धित पट्टावलियाँ एवं प्रशस्तियाँ ही इस गच्छ के इतिहास को उजागर करती हैं । अञ्चलगच्छ के संस्थापक श्री आर्यरक्षितसूरि थे । इनका जन्म संवत् ११३६ में दन्ताणी ग्राम हुआ था। इन्होंने कालीदेवी की उपासना की थी तथा ७० बोलों ( मान्यताओं) का प्रतिपादन कर अपने समुदाय का नाम "विधिपक्ष" रखा था । संवत् १२१३ में इसी विधिपक्ष का दूसरा नाम पड़ा—— अञ्चलगच्छ” ।रे इस अञ्चलगच्छ की स्थापना में पूर्व की पट्टावली निम्नक्रमानुसार प्रस्तुत की गई है - ( १ ) आर्य सुधर्मास्वामी ( आद्य पट्टधर ), ( २ ) आर्य जम्बुस्वामी, ( ३ ) प्रभवस्वामी, ( ४ ) सय्यम्भवस्वामी, ( ५ ) यशोभद्रसूरि, ( ६ ) सम्भूतिविजय, (७) भद्रबाहुस्वामी, (८) स्थूलभद्रस्वामी, ( ९ ) आर्य महागिरि, (१०) आर्य सुहस्ती, ( ११ ) आर्य सुस्थित तथा आर्य सुप्रतिबुद्ध, (१२) इन्द्रदिन्नसूरि, (१३) आर्य दिन्नसूरि, (१४) सिंहगिरिसूरि, (१५) वज्रस्वामीसूरि, ( १६ ) वज्रसेनसूरि, ( १७ ) चन्द्रसूरि, (१८) सामन्तभद्रसूरि, (१९) वृद्धदेवसूरि, (२०) प्रद्योतनसूरि, (२१) मानदेवसूरि, (२२) मानतुंगसूरि, ( २३ ) वीरसूरि, (२४) जयदेवसूरि, (२५) देवानन्दसूरि, (२६) विक्रमसूरि, (२७) नरसिंहसूरि, ( २८ ) समुद्रसूरि, (२९) मानदेवसूरि, (३०) विबुधप्रभसूरि, (३१) जयानन्दसूरि, ( ३२ ) रविप्रभसूरि, ( ३३ ) १. पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री : जैनधर्म, पृ० ३०९ । २. J. G. Buhler : The Indian sect of Jainas, P. 77. ३. पं० कल्याणविजयगणि: श्रीपट्टावलीपरागसङ्ग्रह, पृ० २४१ । ४. श्री पार्श्व : अञ्चलगच्छ दिग्दर्शन ( गुजराती ), पृ० ९-१० । १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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