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________________ १०४ लल्लनजी गोपाल देवल में इन श्लोकों की उपस्थिति को एक दूसरी व्याख्या सम्भव है। हमने देखा है कि देवल के इन श्लोकों का एकमेव सीधा प्रमाण कृत्यकल्पतरु का मोक्षकाण्ड है, वीरमित्रोदय के मोक्षप्रकाश ने तो केवल उन्हें कृत्यकल्पतरु से ले लिया है। यह सम्भव है कि लक्ष्मीधर ने केवल सूत्रों को ही देवल का बतलाया था और श्लोकों को महाभारत से उद्धृत किया था, किन्तु कालान्तर में किसी प्रतिलिपिकर्ता ने प्रमादवश महाभारत के नाम के उल्लेख को छोड़ दिया हो और इस प्रकार देवल के सूत्रों और महाभारत के श्लोकों को परस्पर संपृक्त कर दिया हो, जिससे यह प्रतीत हुआ कि ये श्लोक भी देवल धर्मसूत्र के ही अंश थे। हमने अन्यत्र यह दिखलाया है कि एक दूसरे स्थल पर भी कृत्यकल्पतरु के मोक्षकाण्ड में इसी प्रकार की त्रुटि का एक दूसरा उदाहरण है। यहाँ महाभारत के एक उद्धरण को ब्रह्मपुराण का बतलाया गया है।' एक अन्य सम्भावना यह भी है कि यद्यपि ये ९ श्लोक देवल धर्मसूत्र में मूलतः नहीं थे किन्तु जब कालान्तर में इसमें परिवर्तन और परिवर्धन हुए, तो इन श्लोकों को जोड़ दिया गया। यदि यह स्वीकार कर लिया जाय कि पार्थ का नाम जानबूझकर श्लोक ६ ( और सम्भवतः श्लोक ९) से हटा दिया गया था, तो इन नौ श्लोकों को प्रक्षिप्त मानना होगा, क्योंकि उनको जोड़ने वाले ने अपने कार्य को छुपाने का प्रयास किया था। इस स्थिति में शान्तिपर्व के २८९वें अध्याय का रचनाकाल वह सीमा होगी, जिससे पूर्व देवल धर्मसूत्र का संशोधन और उसमें इन श्लोकों का प्रवेश हो गया था। यदि देवल के साथ इन श्लोकों के सम्बन्ध के विषय में शङ्कराचार्य के मौन का कोई महत्त्व है, तो इन प्रक्षेपकों के प्रवेश की तिथि बहुत उत्तर काल में होगी-शङ्कराचार्य के बाद, किन्तु निश्चय ही लक्ष्मीधर से पूर्व ।। __ अतः कृत्यकल्पतरु में प्राप्य देवल धर्मसूत्र के उद्धरण में ऐश्वर्यों पर नौ श्लोकों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यद्यपि मूल देवल धर्मसूत्र अत्यन्त प्राचीन है, इसमें उत्तरकाल में दूसरे स्रोतों से सामग्री जोड़कर इसका परिवर्धन किया गया और यह कार्य महाभारत के शान्तिपर्व के अपने वर्तमान स्वरूप प्राप्त करने और महाभारत में योग विषयक अध्यायों के प्रवेश के बाद ही हुआ था। -९, गुरुधाम कालोनी, दुर्गाकुण्ड रोड वाराणसो ( उ० प्र०) १. "कृत्यकल्पतरु में अरिष्टों पर ब्रह्मपुराण से उद्धरण" पर हमारा लेख कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग को पत्रिका में प्रकाशित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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