SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 372
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की खगोल विद्या एवं गणित सम्बन्धी मान्यताएँ ९७ सम्बन्ध में जघन्य और उत्कृष्ट मान प्रस्तुत किये हैं, जो(extremals)कहलाते हैं । इन सभी तथ्यों की, जहाँ जघन्य और उत्कृष्ट का बंधन लगाया जाता है, प्रकृति के नियम, बलों और घटनाओं के क्षेत्र सम्बन्धी नियम अपने आप प्राप्त होते हैं। यह एक बहुत ही गहरे रहस्य की बात है, जिस पर निम्नलिखित रूप से वैज्ञानिकों का ध्यान गया और आज भी जटिलतम विज्ञानों के रहस्यमय नियमों को ज्ञात करने में ये ही मान उपयोग में लाये जाते हैं-मोपेर्श ( Mau pertuis : १६९८-१७५९) का जघन्य कर्म ( action) का सिद्धान्त, फर्मा का जघन्यकाल का सिद्धान्त, हेरन (लगभग ५० ई०) का जघन्य पथ का सिद्धान्त, गाऊस ( १७७७-१८५५ ) का जघन्य नियंत्रण का सिद्धान्त, जैकोबी ( १८०४-१८५१) एवं हैमिल्टन ( १८०५-१८६५ ) के जघन्य परिवर्तन के सिद्धान्त, हत्ज ( १८५७१८९४ ) का जघन्य वक्रता का सिद्धान्त, आइन्स्टाइन ( १८७९-१९५५ ) का प्रकाश सम्बन्धी निश्चल उत्कृष्ट गति का सिद्धान्त, यह याद दिलाते हैं कि जघन्य और उत्कृष्ट के मानों में प्रकृति के अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। मोपेशं ने सर्वप्रथम यह कहा था कि सभी सम्भव गतियों में से प्रकृति उसी को निर्वाचित करती है, जो अपने इष्ट स्थान पर क्रिया के अल्पतम व्यय से पहुँचती है। बाद के गणितज्ञों, आयलर ( १७०७-१७८३ ) तथा लाग्रान्ज (१७३६-१८१३ ) द्वारा इसे परिष्कृत रूप दिया गया। इससे सम्बन्धित तत्त्वार्थ सूत्र का कथन है : विग्रहवती च संसारिणः प्राक् चतुभ्यः ( २-२९ ) । इसमें गति सम्बन्धी रहस्य छिपा हुआ है। इसी प्रकार गोम्मटसारादि में कर्म सम्बन्धी आस्रव, निर्जरा में जघन्य और उत्कृष्ट योग, कषायादि, जघन्य और उत्कृष्ट समयप्रब्ध्वादि, जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अनुभाग प्रदेशादि के विवरण अत्यन्त गढ़ प्रकृति रहस्यों को दिग्दर्शित करते हैं। यहीं फंक्शन और फंक्शनल का रहस्य छिपा हुआ है, जो विभिन्न राशियों के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। एक्शन (कर्म?) का मालिक क्वान्टम है, जो ६.६२४४१०-२० अर्ग प्रति सेकेन्ड है। यहाँ जैनागम में यह जघन्य योगादि क्रियाओं से तुलना की वस्तु है। अविभागी प्रतिच्छेदों का भेद भी विशेष रूप से समझने योग्य है। सार रूप में प्रस्तुत उपर्युक्त मान्यताएँ नेमिचन्द्राचार्य के कार्य को महत्त्वपूर्ण बनाती हैं। उनके वैज्ञानिक अध्ययन की परम आवश्यकता है, जिसमें उनकी महान् टीकायें सहायक सिद्ध हो सकती हैं, जो जीवतत्त्वप्रदीपिका एवं सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका के नाम से विख्यात हैं। -प्राचार्य, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय धर्मटेकड़ो, छिन्दवाड़ा ( म०प्र०) ४८०००१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy