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________________ जैन एवं बौद्ध तत्त्वमीमांसा : एक तुलनात्मक अध्ययन क्रमांक | सामान्य तारामण्डल जंबूद्वीप से ऊँचाई । सामान्य तारामण्डल सूर्य ००० चंद्र नक्षत्र Gowww ८८४ बुध व्यास ( योजनों में) १/४ से १ कोश तक ४८/६१ योजन ५६/६१ योजन १ कोश तक १/२ योजन १ योजन एक कोश से कम १/२ कोश १/२ कोश एक योजन से कम एक योजन से कम ८८८ ८९१ ८९४ ८९७ ९०० शुक मंगल शनि राहु नोट-१ कोश = १००० मील १ योजन - ४ कोश- ४००० मील स्वर्ग और मोक्ष जम्बू-सुमेरु पर्वत के ऊपर अवस्थित हैं तथा नरक जम्बूद्वीप के नीचे अवस्थित है। इनके विषय में जैन-बौद्ध मान्यताओं का संक्षिप्त विवरण पीछे दिया जा चुका है। पालि साहित्य में समूचे भारतवर्ष के लिए ही 'जम्बूद्वीप' शब्द का प्रयोग हुआ है। पौराणिक जम्बूद्वीप इससे बृहत्तर है और जैन जम्बूद्वीप तो निश्चित ही बृहत्तम है। इसके मध्य में मेरु ( सुमेरु ) पर्वत है । जम्बूद्वीप के सात भागों अथवा क्षेत्रों में भारतवर्ष एक है, जिसे हम आधुनिक भारत की भौगोलिक स्थिति से तुलना कर सकते हैं। अतः पालि साहित्य का जम्बूद्वीप जैन साहित्य का भरतक्षेत्र कहा जाना चाहिए । इसे चीनी साहित्य में भी 'जम्बूद्वीप' नाम दिया गया है। यही नहीं, मगधदेश, ब्राह्मणदेश जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। पालि साहित्य में समूची पृथ्वी को चार महाद्वीपों में विभक्त किया गया है-जम्बूद्वीप, पूर्वविदेह, उत्तरकुरु और अपरगोयान । ये चारों महाद्वीप सुमेरु पर्वत के चारों ओर अवस्थित हैं। जैन परम्परा में सात क्षेत्र हैं-भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत। इन क्षेत्रों के छह कुलाचल हैं-हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि ( रूप्प ) और शिखरी । पालि साहित्य में सुमेरु पर्वत की ऊँचाई १६८ योजन बताई गई है तथा उसके चारों ओर सात पर्वत श्रेणियों का उल्लेख है-युगन्धर, ईसधर, करवीक, सुदस्सन, नेमिन्धर, विनतक और अस्सकण्ण । सुमेरु के पूर्व में पूर्व विदेह, उत्तर में उत्तरकुरु, पश्चिम में अपरगोयान और दक्षिण में जम्बूद्वीप अवस्थित है । जब जम्बूद्वीप में सूर्योदय होता है, तब अपरगोयान में रात्रि का मध्यप्रहर होता है । अपरगोयान में जब सूर्यास्त होता है, तो जम्बूद्वीप में अर्धरात्रि होती है । अपरगोयान में जब सूर्योदय होता है, तो जम्बूद्वीप में दोपहर होती है, पूर्वविदेह में सूर्यास्त और उत्तरकुरु में अर्धरात्रि । __इस विवरण को किसी सीमा तक जैन जम्बूद्वीप की स्थिति से मिला सकते हैं । पालि परम्परा के अनुसार चक्रवर्ती राजा चारों महाद्वीपों का स्वामी होता है। पहले वह पूर्वदिशा में पूर्वविदेह पर विजय प्राप्त करता है, उसके बाद दक्षिण दिशा में अवस्थित जम्बूद्वीप पर, फिर पश्चिम में अपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012016
Book TitleAspect of Jainology Part 2 Pandita Bechardas Doshi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Sagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1987
Total Pages558
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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