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________________ b सागरमल जैन परिवार द्वारा स्थापित औद्योगिक संस्थानों में न्यूकेम प्लास्टिक्स लि०, न्यू वेयर इण्डिया लि०, एक्सिस केमिकल्स एवं फार्मास्यूटिकल्स लि०, न्यू फार्मा केमिकल्स आदि उल्लेखनीय हैं। इन सबके बावजूद उनके जीवन का एक और भी पहलू था, जो नितान्त दार्शनिकता से ओतप्रोत था। वे अपने इर्द-गिर्द घटित होनेवाली घटनाओं के सन्दर्भ में इतना अधिक चिन्तन करते थे कि वह एक दार्शनिक मीमांसा बन जाता था। संयोगवश उनके जीवन-दर्शन को समझ सकने में उनकी डायरी के पन्ने हमें मार्गदर्शन दे सकते हैं। वे लिखते हैं कि “हिन्दुओं को इस एक ही जन्म पर विश्वास नहीं है। उन्हें विश्वास है कि आत्मा अपनी उन्नति के मार्ग में कई बार जन्म धारण करेगी। इसलिए किसी विशेष जन्म में न तो इतना मोहान्ध ही होना चाहिए और न निराश ही, क्योंकि आत्मविकास के अनेक अवसर मिलते हैं। मृत्यु उन्हें कभी एक ऐसा अन्त जो सदैव के लिए विकास के अवसर हमारे हाथ से छीन ले, प्रतीत नहीं हुआ। शरीर ही तो अनित्य है, आत्मा नहीं। जिसका स्वभाव ही बदलते रहना है, तो फिर उससे इतना मोह भी क्यों । भारतीयों ने मृतक शरीर को जलाने को जो प्रथा निकालो, वह कई कारणों से अभीष्ट है । भारतीयों को मृतक शरीर से न तो मोह था, और न इस जीर्ण शरीर को कोई आवश्यकता।" उनके व्यक्तिगत अनुभव ही इतना कुछ कह जाते हैं कि जो एक व्यथित एवं निराश व्यक्ति के जीवन में पुनः आशा की ज्योति जगा सकने हेतु पर्याप्त हैं। वे अपनी डायरी में यह भाव व्यक्त करते हैं कि "संसार विचित्रताओं से भरा पड़ा है, यह अपार है, अथाह है। इसमें कोई भी घटना और अवस्था असम्भव नहीं। स्वयं जैसा करोगे, वैसा पाओगे। अतः किसी भी घटना से घबराओ नहीं, क्योंकि यहाँ सब कुछ सम्भव है। अतः जो कुछ भी परेशानी है, वह व्यक्ति की अज्ञानता और संकीर्णता के कारण है।" इसलिए वे परेशान व्यक्ति को इन अज्ञानताओं एवं संकीर्णताओं से ऊपर उठने की सलाह देते हुए लिखते है कि "स्वयं प्रसन्न रहो, गरोबो हो, अमोरो हो, सुख हो, दुख हो हंसो-हंसाओ तो तुम सुखी होगे और संसार तुम्हें सुखद ही प्रतीत होगा।" परम्परागत रीति-रिवाजों में भी उन्हें यदि कोई विशेष बात दिखायो पड़ती, तो उस पर चिन्तन करते और लिखने से लेखनी को रोक न पाते । हिन्दुओं और मुसलमानों के त्यौहारों की तुलना करते हुए वे लिखते हैं कि "हिन्दुओं का कोई त्योहार हो, वह आनन्दोत्सव के लिए होता है। हम जन्म दिवस तो आनन्द के साथ मनाते ही हैं, पर मृत्यु दिवस भी आनन्द का हो विषय है । मृत्यु सदैव के लिए अन्त नहीं । मृतक व्यक्ति हमारे लिए सदा के लिए खो नहीं गया। यह तो जीर्ण शरीर का जीर्ण वस्त्रों की तरह परिवर्तन है। अतः मृत्यु के अवसर पर भी आनन्दोत्सव मनाया जाना चाहिए । मृत्यु कोई भय नहीं, वह अवश्य आती है। हमारे बड़े धर्मनेता हो चुके हैं, जिनकी मृत्यु कई प्रकार के दुःख और कष्ट से हुई है; परन्तु हम कभी भी उनको उस अवस्था को दुःख और पोड़ा का आवरण नहीं पहनाते । मृत्यु भी हमारे लिए उत्सव या आनन्द मनाने का दिवस है, शान्ति का अद्भुत अवसर।" भारतीय संस्कृति की आत्मसात करने की प्रवृत्ति पर उनकी लेखनी कितनी मुखर हुई है। वे लिखते हैं कि "हिन्दुओं के अबतक जिन्दा रहने का एक कारण यह भी है और जो सबको ज्ञात है-यह है हमारी समन्वयशीलता। सदैव से ही हिन्दुस्तान में नये-नये लोग आक्रमणकारी अथवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012015
Book TitleAspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages170
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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