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________________ खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर ब्राह्मण एवं जैन धर्मों के समन्वय का मूर्तरूप १४९ ग्रन्थ में अशोकवाटिका से सम्बन्धित दृश्य की भी चर्चा मिलती है ( पउमचरिय ५३।११ ) । अर्धमण्डप और मण्डप पर वरण्ड के ऊपर द्विभुज राम की कई छोटी मूर्तियाँ भी हैं । इनमें राम के दोनों हाथों में एक लम्बा शर दिखाया गया है । मण्डप की उत्तरी भित्ति पर ही अग्नि की भी शक्तिसहित एक मूर्ति है । अग्नि श्मश्रु युक्त है और उनके तीन हाथों में धनुकार्षण, दण्ड और शिखा हैं तथा एक हाथ आलिंगनमुद्रा में है । शक्ति की दाहिनी भुजा आलिंगनमुद्रा में है, जबकि बायें में चक्राकार पद्म है । काम और रति की भी दो युगल मूर्तियाँ हैं जो क्रमशः पूर्व और उत्तर की भित्तियों पर हैं । पूर्वी भिति की मूर्ति में श्मश्रु और जटामुकुट से शोभित काम के दो हाथों में पंचशर एवं इषु-धनु है, जबकि शेष दो हाथों में से एक व्याख्यानमुद्रा में है और दूसरा आलिंगनमुद्रा में । उत्तरी भित्ति की मूर्ति में काम-दाढ़ी मूंछों से रहित तथा किरीट मुकुट से सज्जित है । उनके दो हाथों में पूर्ववत् पंचशर (मानव मुख) और इषुधनु हैं, तथा एक हाथ आलिंगन मुद्रा में है । केवल व्याख्यानमुद्रा के स्थान पर एक हाथ में पद्मकलिका प्रदर्शित है। दोनों ही उदाहरणों में रति बायें पार्श्व में खड़ी हैं और उनका दाहिना हाथ मुद्रा में है जबकि बायें में पुस्तक ( या पद्म) प्रदर्शित है । उत्तरी भित्ति पर ही एक ऐसी युगल मूर्ति भी है जिसकी सम्भावित पहचान यम यमी से की जा सकती है । जटामुकुट और मूंछों से युक्त देवता के दो हाथों में खट्वांग और पताका है जबकि शेष हाथों में से एक में व्याख्यान - अक्षमाला है और दूसरा आलिंगनमुद्रा में है । शक्ति का दाहिना हाथ आलिंगनमुद्रा में है और बायें में पद्म है । देव युगल आकृतियों के अतिरिक्त मन्दिर के जंघा तथा अन्य भागों पर सामान्य स्त्री-पुरुष युगलों की भी मूर्तियाँ हैं । ये मूर्तियां अधिकांशतः आलिंगनमुद्रा में हैं । इनमें स्त्री का दाहिना हाथ सदैव आलिंगन मुद्रा में है और बायें में दर्पण ( या पद्म) प्रदर्शित है । कभी-कभी इन युगलों को वार्तालाप की मुद्रा ' में भी दिखलाया गया है । इन मूर्तियों में आकृतियां विभिन्न रूपों और वस्त्राभूषणों वाली हैं, जो समाज के विभिन्न वर्गों एवं स्तरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें कभी-कभी स्त्री को चुम्बन की स्थिति में या चुम्बन के लिए पुरुष के सम्मुख आते हुए और पुरुष को स्त्री का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए या उसके पयोधरों का स्पर्श करते हुए दिखलाया गया है | ये आकृतियां निर्वस्त्र न होकर पूरी तरह वस्त्र सज्जित हैं । कुछ उदाहरणों में समीप ही किसी आकृति को इन कृत्यों पर आश्चर्य व्यक्त करते या पीछे मुड़कर वापस लौटते हुए भी दिखाया गया है । पूर्वी जंघा के एक दृश्य में यह भाव पूरी तरह स्पष्ट है । दृश्य में श्मश्रु तथा जटाजूट से शोभित किसी ब्राह्मण साधु के दोनों ओर दो स्त्रियां खड़ी हैं । इनमें से एक ने साधु की दाढ़ी और दूसरे ने उसकी जटाओं को पकड़ रखा है। यह दृश्य निश्चित ही स्त्रियों द्वारा साधु को उसके किसी कृत्य पर दण्डित करने से सम्बन्धित है । Jain Education International रीडर, कला इतिहास विभाग, ari हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी - २२१००५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012015
Book TitleAspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages170
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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