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________________ खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर : ब्राह्मण एवं जैन धर्मों के समन्वय का मूर्तरूप १४७ देवताओं का शक्ति के साथ और वह भी आलिंगनमुद्रा में निरूपण परम्परा के सर्वथा प्रतिकूल है। यह तथ्य भी मन्दिर की मूर्तियों के ब्राह्मण देव-परिवार से सम्बन्धित होने का ही समर्थक है। पार्श्वनाथ मन्दिर की अप्सरा मूर्तियाँ खजुराहो मन्दिरों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं । इनमें नारी सौन्दर्य पूरी तरह साकार हो उठा है। अप्सरा मूर्तियों में तीखी भंगिमाओं के माध्यम से शारीरिक आकर्षण और ऐन्द्रिकता की जो अभिव्यक्ति हई है. जैन धर्म उसकी भी संस्त करता । अप्सरा मूर्तियों के अतिरिक्त मन्दिर पर कामक्रिया में रत युगलों की चार मूर्तियां हैं। इनमें स्त्री-पुरुष युगलों को निर्वस्त्र और प्रगाढ़ आलिंगन तथा सम्भोग को स्थिति में दिखाया गया है । गर्भगृह की दक्षिणी भित्ति पर वस्त्रधारी एक स्त्री पुरुष युगल की प्रगाढ़ में आलिंगनबद्ध मूर्ति भी है। यद्यपि पाश्वनाथ मन्दिर की काम-मूर्तियाँ खजुराहो के लक्ष्मण, कन्दरिया महादेव, दूलादेव एवं विश्वनाथ मन्दिरों की तुलना में बिल्कुल ही उद्दाम नहीं हैं किन्तु इस प्रकार का शिल्पांकन निश्चित ही ब्राह्मण मन्दिरों के प्रभाव का प्रतिफल है। पार्श्वनाथ मन्दिर के शिल्पांकन में जहाँ ब्राह्मण प्रभाव पूरी तरह मुखर है वहीं आदिनाथ मन्दिर इस प्रभाव से पूरी तरह मुक्त है। पार्श्वनाथ मन्दिर के भित्ति एवं अन्य भागों की स्वतन्त्र एवं देव युगल मूर्तियों में पद्म के विविध रूपों तथा सर्प और बीजपूरक का सामान्य रूप से प्रदर्शन हुआ है। गर्भगृह की भित्ति के आठ कोणों की दिक्पाल मूर्तियों के ऊपर शिव की आठ मूर्तियाँ बनी हैं। इनमें जटामुकुट, वनमाला और उपवीत से शोभित चतुर्भुज शिव त्रिभंग में हैं और उनके हाथों में वरदाक्ष, त्रिशूल, सर्प और कमण्डल है । समीप ही वाहन नन्दी भी उत्कीर्ण है । मण्डप की भित्ति पर भो शिव को इन्हीं विशेषताओं वाली चतुर्भुज मूर्तियाँ हैं। पूर्वी भित्ति की एक मूर्ति में शिव अपस्मारपुरुष पर खड़े हैं और उनके करों में अभयमुद्रा, त्रिशूल, चक्राकार पद्म तथा कमण्डल हैं। मण्डप की अन्य मूर्तियों में नन्दीवाहन वाले शिव जटामुकुट से शोभित हैं और उनके दो करों में पद्म और शेष दो में त्रिशूल, सर्प, कमण्डल या बीजपुरक में से कोई दो प्रदर्शित हैं। एक उदाहरण में शिव के अभयमद्रा, गदा, सर्प और कमण्डलु भी प्रदर्शित है। ये मुर्तियाँ ऋषभनाथ और शिव के पारस्परिक सम्बन्ध को प्रकट करती हैं। विष्णु की स्वतन्त्र मूर्तियाँ केवल मण्डप की भित्ति पर ही हैं इनमें चतुर्भुज विष्णु के साथ वाहन नहीं दिखाया गया है। उनके हाथों में गदा, शंख, चक्र, धनुष, पद्म आदि प्रदर्शित हैं । अधिकांशतः विष्णु को एक हाथ गदा पर टेककर आराम करने की मुद्रा में दिखाया गया है। कुछ उदाहरणों में परशु, बीजपुरक तथा अभयमुद्रा भी दिखायी गयी है । १. तांत्रिक प्रभाव एवम् अन्य धर्मों तथा उनसे सम्बन्धित कलास्थलों पर काम सम्बन्धी अंकनों की विशेष लोकप्रियता के कारण ही सम्भवः जैनों ने भी इस प्रकार के मूर्त अंकनों की प्रासंगिकता का अनुभव किया होगा। यह बात जैन ग्रन्थ हरिवंशपुराण ( ७८३ ई० ) के एक सन्दर्भ से भी स्पष्ट है ( २९.१०५)। हरिवशपुराण ( जिनसेनकृत) में एक स्थल पर उल्लेख है कि सेठ कामदत्त ने प्रजा के कौतुक के लिए एक जिन मन्दिर में कामदेव और रति की मूर्तियां भी बनवाई। कामदेव और रति को देखने के कौतुहल से जगत के लोग जिन मन्दिर में आते थे, और इस प्रकार कौतुकवश आए हुए लोगों को जिन धर्म की प्राप्ति होती थी। यह जिननंदिर कामदेव मंदिर के नाम से ही प्रसिद्ध था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012015
Book TitleAspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages170
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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