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________________ खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर : ब्राह्मण एवं जैन धर्मों के समन्वय का मूर्तरूप जैन मन्दिर पूर्वी सम्ह के मन्दिरों के अन्तर्गत आते हैं। घण्टई मन्दिर के अतिरिक्त खजुराहो के अन्य सभी प्राचीन और नवीन जैन मन्दिर एक विशाल किन्तु आधुनिक चहारदीवारी के अन्दर स्थित हैं। इस स्थल के नवीन जैन मन्दिर भी प्राचीन मन्दिरों के ध्वंसावशेषों से ही निर्मित हैं। वर्तमान में इस चहारदीवारी के अन्दर कुल ३२ जैन मन्दिर हैं, जिनमें केवल पार्श्वनाथ और आदिनाथ मन्दिर ही अपने मूलरूप में हैं। खजुराहो के जैन मन्दिरों में पार्श्वनाथ मन्दिर प्राचीन और सर्वाधिक सुरक्षित है। स्थापत्यगत योजना एवं मूर्त अलंकरणों की दृष्टि से भी पार्श्वनाथ मन्दिर जैन मन्दिरों में विशालतम एवं सर्वोत्कृष्ट है। पूर्वाभिमुख पार्श्वनाथ मन्दिर के पश्चिमी प्रक्षेप में गर्भगृह के पृष्ठभाग से जुड़ा एक स्वतन्त्र देवालय भी है, जो इस मन्दिर की अभिनव विशेषता है। श्रीकृष्णदेव ने लक्ष्मण मन्दिर (९३०-५० ई०) से समानता के आधार पर पार्श्वनाथ मन्दिर को धंग के शासनकाल के प्रारम्भिक दिनों (९५०-७० ई०) में निर्मित माना है।' पार्श्वनाथ मन्दिर मूलतः ऋषभनाथ को समर्पित था, जो गर्भगृह को गोमुख-चक्रेश्वरी से युक्त मूल प्रतिमा के सिंहासन तथा ललाटबिम्ब पर चक्रेश्वरी के निरूपण से स्पष्ट है। पार्श्वनाथ मन्दिर ब्राह्मण और जैन धर्मों के समन्वय का निःसन्देह मूर्तरूप है। दोनों धर्मों के समन्वय या सहअस्तित्व का इतना स्पष्ट मूर्त उदाहरण हमें अन्य किसी मन्दिर में नहीं मिलता है। इस मन्दिर के विभिन्न भागों पर ब्राह्मण धर्म के देवी-देवताओं तथा काम सम्बन्धी मूर्तियां बनी हैं. जो मन्दिर के निर्माण में ब्राह्मण प्रभाव को पूरी तरह स्पष्ट करती हैं। विष्णु को समर्पित पूर्ववर्ती लक्ष्मण मन्दिर का, स्थापत्य और देव-मूर्तियों की दृष्टि से पार्श्वनाथ मन्दिर पर स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। दोनों मन्दिरों की कृष्णलीला ( यमलार्जुन ) तथा राम-सीता-हनुमान और बलरामरेवती की मूर्तियां समान विवरणों वाली हैं। पार्श्वनाथ जैन मन्दिर के विक्रम संवत् १०११ के लेख में उल्लेख है कि धंग के शासन काल में हो श्रेष्ठि पाहिल ने जिननाथ ( पार्श्वनाथ ) का भव्य मन्दिर बनवाकर उसके लिए प्रभूत दान दिया था। महाराज धंग के गुरु वासवचन्द्र भी जैन थे, जिन्होंने निश्चित हो अपने पद के प्रभाव का उपयोग किया होगा। पाहिल द्वारा पार्श्वनाथ मन्दिर को सात वाटिकाओं का दान दिए जाने पर धंग ने उनका सम्मान भी किया था। यह बात जैन धर्म के प्रति धंग के उदार दृष्टिकोण को प्रकट करती है। ___ पार्श्वनाथ मन्दिर के गर्भगृह तथा मण्डप को भित्तियों के प्रक्षेपों और आलों में जंघा पर क्रमशः नीचे से ऊपर की ओर छोटी होती गयी मूर्तियों को तीन समानान्तर पंक्तियाँ हैं। नीचे की १. कृष्णदेव, “दि टेम्पुल्स आफ खजुराहो इन सेन्ट्रल इण्डिया, एन्थियण्ट इण्डिया, अंक १५, १९५९, प. ५४; लक्ष्मण और पार्श्वनाथ मन्दिरों पर धंग के शासन काल के विक्रम संवत् १०११ ( ९५४ ई० ) के दो लेख हैं। इन लेखों की लिपि में पर्याप्त अन्तर के कारण पार्श्वनाथ मन्दिर के लेख को लुप्त मूल अभिलेख की प्रतिलिपि माना जाता है, जिसे लगभग १०० वर्ष बाद फिर से लिखा गया। २. एपिग्राफिया इण्डिका, खण्ड-१, पृ. १३५-३६; कृष्णदेव, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ. ४५; जन्नास, ई० तथा ऊबइये, जे., खजुराहो, हेग, १९६०, पृ. ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012015
Book TitleAspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages170
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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