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________________ पाण्डव पुराण में राजनैतिक स्थिति १०१ राज्य के जिन सात अङ्गों की बात मनु', कामन्दक, और कौटिल्य आदि ने की है वे सभी पाण्डव पुराण में पाये जाते हैं। इनमें स्वामी अथवा राजा सर्वप्रमुख हैं। अमात्य भारतीय मनीषियों ने मन्त्रियों को बहुत महत्त्व दिया है। मन्त्रियों के सत्परामर्श पर ही राज्य का विकास, उन्नति एवं स्थायित्व निर्भर है। कौटिल्य ने अमात्य का महत्त्व बताते हुये लिखा है कि जिस प्रकार रथ एक पहिये से नहीं चल सकता उसी प्रकार राज्य को सुचारु रूप में चलाने के लिये राजा को भी सचिवरूपी दूसरे चक्र की आवश्यकता होती है। शुक्रनीति में कहा गया है कि राजा चाहे समस्त विद्याओं में कितना ही दक्ष क्यों न हो? फिर भी उसे मन्त्रियों के सलाह के बिना किसी भी विषय पर विचार नहीं करना चाहिये । इसी प्रकार मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति रामायण, महाभारत' आदि ग्रन्थों में अमात्य पद का महत्त्व वर्णित है। पाण्डव पुराण में अमात्य को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अमात्य राजा को नीतिपूर्ण सलाह देते थे इसलिये इन्हें "युक्तिविशारद"1° कहा गया है। मन्त्री प्रायः राजा को प्रत्येक कार्य में सलाह देते थे। राजा अकम्पन ने पूत्री सुलोचना के लिये योग्य वर की खोज के लिये मन्त्रियों से सलाह की तथा सिद्धार्थ मन्त्रियों की सलाह से स्वयंवर-विधि का आयोजन किया। इसी प्रकार राजा द्रपद ने तथा राजा ज्वलनवटी ने '३ अपनी-अपनी पुत्री के विवाह सम्बन्ध में मन्त्रियों से सलाह ली। मन्त्रीगण अनेक युक्तियों से राजा की रक्षा भी करते थे। किसी विद्वान् का अमोघजिह्वा नामक आदेश देने पर कि आज से सातवें दिन पोदनपुराधीश के मस्तक पर व्रजपात होगा, चिन्तातुर राजा ने सभी मन्त्रियों से विचार-विमर्श किया तथा युक्ति-निपुण सब मन्त्रियों ने सलाह करके राजा के पुतले को सिंहासन पर स्थापित करके राजा की रक्षा की थी।४ । युद्ध-क्षेत्र में भी मन्त्री राजा के साथ होते थे। जरासन्ध के सेनापति "हिरण्यनाभ" के १. मनुस्मृति, ९।२९४ । २. नीतिसार, ४.१२ । ३. अर्थशास्त्र, ६.१.१ । ४. अर्थशास्त्र, १७१५ । ५. शुक्रनीति, २.२ । ६. मनुस्मृति, ७.५४ । ७. याज्ञवल्क्य स्मृति, १.३१० । ८. रामायण अयोध्याकाण्ड, १९७.१८ । ९. महाभारत सभापर्व, ५.२८ । १०. पाण्डव पुराण, ४।१३१ । ११. पाण्डव पुराण, ३१३२-४० । १२. पाण्डव पुराण, १५।५०-५१ । १३. पाण्डव पुराण, ४।१३ । १४. पाण्डव पुराण, ४११३१-१३३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012015
Book TitleAspect of Jainology Part 1 Lala Harjas Rai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages170
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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