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________________ डॉ० सागरमल जैन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व एक वर्ष बाद सेवामुक्त होने वाला था । साकेत महाविद्यालय, फैजाबाद के एक प्राध्यापक की पुत्री संस्कृत में शोध-कार्य कर रही थी । शोध का विषय एक प्रकरण (रूपक-विशेष) था जिसके संवादों में विभिन्न प्राकृतों की बहुलता थी। उस ग्रन्थ की कोई टीका नहीं थी और बिना टीका के पात्रों का संवाद समझना कठिन था । उक्त प्राध्यापक अनेक स्थानों पर भटकतेभटकते किसी प्रकार डॉक्टर सागरमल जैन के पास पहुँचे । परिचय और प्रयोजन ज्ञात होने पर उन्होंने कहा - इस कार्य के लिए आप फैजाबाद से व्यर्थ इतनी दूर चले आये हैं । मैं पत्र लिख देता हूं, अपने ही जिले के टाँडा नगर में पाठक जी से मिल लीजिये, वे आप का कार्य कर देंगे । प्राध्यापक महोदय ने वह पत्र मुझे दिया । उसमें उनकी पुत्री की सहायता करने का आग्रह था और साथ ही साथ सेवानिवृत्त होने के पश्चात् मुझे संस्थान को अपनी सेवायें समर्पित करने के लिये आमन्त्रित भी किया गया था। मैंने संस्थान से जुड़ने की स्वीकृति भेजी तो डॉक्टर साहब बहुत प्रसन्न हुये । इसके बाद जब तक मैं संस्थान में पहुँच नहीं गया तब तक उनके अनुरोध-पत्र बराबर आते रहे । ३१ नवम्बर १९९२ ई० को मैं जब संस्थान में पहुँच गया तभी उन्हें पूर्ण सन्तोष मिला । एक दिन सान्ध्य-वेला में पुस्तकालय-भवन के मुख्य-द्वार के निकट मेरे साथ टहलते हुये उन्होंने भाव-विभोर होकर कहा था- ‘पाठक जी, जब तक मैं हूं तब तक आप यहाँ अवश्य रहिये । हम दोनों मिलकर प्राकृत-साहित्य की अनेक कृतियों को सामान्य जनों के लिये सुलभ एवं बोधगम्य बना सकेंगे। आज डॉक्टर सागरमल जैन सेवा-मुक्त हो चुके हैं परन्तु उनके पवित्र पसीने की बूंदें जिस सारस्वत उद्यान को सींच गई हैं उसके द्रुमों की स्निग्ध छाया में भारती की वीणा चिर-काल तक अनवरत मुखर होती रहेगी। पार्श्वनाथ विद्यापीठ की एक-एक ईंट, एक-एक दीवार और एक-एक भवन पर उनकी अमिट यशःप्रशस्ति पढ़ी जा सकती है । हम पराशक्ति से उनके सुखी और शताय होने की प्रार्थना करते हैं । "ग्राम पटखौली, पो० मुस्तफाबाद जि० अम्बेडकर नगर, उ० प्र० सागरयर गंभीरा : डॉ० सागरमल जैन भंडारी सरदारचंद जैन* - 'सागरवर गंभीरा' जैसे सामायिक के पाठ लोगस्स में हम नित्य उच्चारण करते हैं । वैसे ही गंभीर चिंतक हैं, डॉ० सागरमल जैन । आपका सर्वप्रथम साक्षात्कार, मिलन सारंगपुर (मध्यप्रदेश) में जैन स्थानक में हुआ। हम जोधपुर से सारंगपुर पर्युषण में धर्म ध्यान कराने-व्याख्यान देने आए और आप शाजापुर से सारंगपुर पधारे तब प्रथम परिचय हुआ । स्वाध्याय संघ जोधपुर का प्रथम संयोजक होने के नाते मैंने आपसे विशेष विचार-विमर्श किया और आपने उस समय पी.एच.डी.करने की भावना व्यक्त की, लगन के पक्के होने से आप शीघ्र ही पी-एच.डी.की डिग्री भी प्राप्त कर ली जैसा कि अंग्रेजी में एक कहावत है - (Where there is a will, there is a way) आप सरल, मधुर भाषी, विद्वान्, विनीत, आगम रसिक, मिलनसार, ज्ञानवान, सादा जीवन-उच्च विचार, सद्गुणों से सुसम्पन्न, सेवा भावी, कुशल लेखक, धाराप्रवाही व्याख्याता, 'श्रमण' पत्रिका के कुशल संपादक, श्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ के माननीय निदेशक, जैन एवं जैनेतर का तुलनात्मक गहरा अध्ययन, प्रभावशाली व्यक्तित्व, चमकता सितारा, विराट व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी हैं । अंत में आपके दीर्घ जीवन की हार्दिक शुभ मंगल कामना व्यक्त करते हुए, विराम लेता हूँ। *त्रिपोलिया बाजार, पोस्ट-जोधपुर-३४२००२ (राजस्थान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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