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________________ १० Jain Education International जैन विद्या के आयाम खण्ड ६ श्रद्धाभिसिश्चित नमन अ अखण्ड आनन्द की प्राप्ति हेतु बढ़ चुके हैं जिनके चरण वि = विमलतर भावों से हो रहा जिनके पापों का हरण र = रति रूप मति का हो चुका जिनके क्षरण न लता की भाँति सुखद और उत्तम है जिनकी शरण = सा= सात्विक वृत्ति शान्त प्रकृति रूप है जिनका जीवन दर्पण ध धर्म-आराधना में कर दिया अपना जीवन अर्पण = क = कर चुके संघ-शासन- समाज सेवा में सब कुछ समर्पण सा = सागर की भाँति गहन है जिनका जीवन दर्शन ग = गगन की भाँति विशाल है जिनका आगम ज्ञान = = र रवि की भाँति देदीप्यमान है जिनका अनुपम लेखन म = मणि की भाँति चमत्कृत है जिनका साहित्य सर्जन ल लहरा रहा झंडा की भाँति जिनका गुण कीर्तन जी जीवन जीने की कला देते सदा समुचित निर्देशन सा० = साधना के आयामों का हो चुका है जिनके स्पर्शन को कोमल हृदययुत जिनका व्यवहार दर्पण के समान = = सा सारभूत तत्त्वों से पूरित है जिनका प्रवचन = द = दया दान- संयम-तप का करते हैं सदा विवेचन र रति मात्र भी नहीं जीवन में, जिनके परिग्रह का संचयन = न = नम्र विनय विवेकादि विविध हैं जिनमें सगुण - महा व्यक्तित्व के पुंज भरना हममें परमगुण म = न नतमस्तक हैं अन्तः तल से अभिनन्दन है विशिष्ट गुण से ॥ For Private & Personal Use Only साध्वी सौम्यगुणा श्री www.jainelibrary.org.
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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