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________________ जैन विद्या के आयाम खण्ड - ६ था जिसका निर्वाह वाराणसी आने के पश्चात् भी सन् १९८६ तक करते रहे । उसके बाद आप अ.भा. दर्शन परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बने । हमीदिया महाविद्यालय के दर्शन विभागाध्यक्ष एवं पार्श्वनाथ विद्याश्रम के निदेशक के रूप में कार्य करते हुए आपकी प्रतिभा को सम्मान के अनेक अवसर उपलब्ध हुए। न केवल आपके अनेक आलेख पुरस्कृत हुए, अपितु आपके शोध-ग्रन्थ 'जैन, बौद्ध और गीता के आचारों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-१ एवं भाग-२' को प्रदीपकुमार रामपुरिया पुरस्कार से तथा जैन भाषादर्शन को स्वामी प्रणवानन्द दर्शन पुरस्कार से सम्मानित किया गया । जैन धर्म, दर्शन, साहित्य, संस्कृति आदि के क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट से के लिए सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल, जयपुर द्वारा १९९४ के 'आचार्य हस्ति स्मृति सम्मान' से सम्मानित किया गया । आपके गृह नगर शाजापुर के साथ-साथ कलकत्ता जैन समाज एवं मद्रास में राजेन्द्र युवा परिषद् द्वारा भी आपको सम्मानित किया गया । डॉ० सागरमल जैन, पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी के निदेशक तो हैं ही, उसके साथ-साथ वे जैन विद्या की अनेक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं वे आगम, अहिंसा, समता और प्राकृत संस्थान, उदयपुर के भी मानद निदेशक हैं । जहाँ आपके मार्ग दर्शन में प्रकीर्णक साहित्य के अनुवाद का कार्य चल रहा है । अब तक पाँच प्रकीर्णक प्रकाशित हो चुके हैं । अ.भा. जैन विद्वत् परिषद के तो आप संस्थापक रहे हैं, वर्षों तक आप इसके उपाध्यक्ष भी रहे हैं । राष्ट्रीय मानव संस्कृति शोध संस्थान, वाराणसी के आप उपाध्यक्ष हैं । जैन विद्या के क्षेत्र में जब और जहाँ कहीं भी कोई योजना बनती हैं, मार्ग निर्देशन हेतु आपका स्मरण अवश्य किया जाता है । वस्तुत: आप विद्वान् तो हैं ही किन्तु एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं । आपके द्वारा राष्ट्रीय स्तर की अनेक कान्फ्रेसों और संगोष्ठियों का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ है। देश-विदेश की यात्रा देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और जैन संस्थाओं ने आपके व्याख्यानों का आयोजन किया । बम्बई, कलकत्ता, मद्रास, अहमदाबाद, पाटण, उदयपुर, जोधपुर, दिल्ली, उज्जैन, इन्दौर आदि अनेक नगरों में आपके व्याख्यान आयोजित किये जाते रहे हैं । साथ ही आप विभिन्न विश्वविद्यालयों में विषय-विशेषज्ञ के रूप में भी आमन्त्रित किये जाते हैं। यही नहीं आपको एसोशियेशन आफ वर्ल्ड रिलीजन्स १९८५ में तथा पार्लियामेन्ट आफ वर्ल्ड रिलीजन्स १९९३ में जैनधर्म के प्रतिनिधि वक्ता के रूप में अमेरिका में आमन्त्रित किया गया । पार्लियामेन्ट आफ वर्ल्ड रिलीजन्स के अवसर पर न केवल आपने वहाँ अपना निबन्ध प्रस्तुत किया अपितु अमेरिका के विभिन्न नगरों शिकागो, न्यूयार्क, राले, वाशिंगटन, सेनफ्राँसिस्को, लासएन्जिल्स, फिनिक्स आदि में जैनधर्म के विविध पक्षों पर व्याख्यान भी दिये । १९९६ में फेडरेशन ऑफ जैन एसोसियशन इन नॉर्थ अमेरिका द्वारा अमेरिका के विभिन्न नगरों में जैनधर्म एवं दर्शन के विविध पक्षों पर व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया। २८ अगस्त से ५ अक्टूबर तक अपने अमेरिका प्रवास में आप सेन्टलुइस, सिन्सेनाटी, पिट्सवर्ग, टोरेन्टो, इलास, न्यूयार्क आदि विभिन्न स्थानों पर अपने व्याख्यान प्रस्तुत किये । इस प्रकार जैनधर्म-दर्शन और साहित्य के अधिकृत विद्वान् के रूप में आपका यश देश एवं विदेश में प्रसारित हुआ । सत्यनिष्ठा विद्याश्रम में कार्यरत रहते हुए आपने अनेक ग्रन्थों, लघु पुस्तिकाओं और निबन्धों के माध्यम से भारती के भण्डार को समृद्ध किया है। अपने कार्यकाल में लगभग ५० से अधिक ग्रन्थों में लगभग तीस हजार पृष्ठों की सामग्री को संपादित एवं प्रकाशित करके नया कीर्तिमान स्थापित किया हैं । आपके चिन्तन और लेखन की विशेषता यह है कि आप सदैव साम्प्रदायिक अभिनिवेशों से मुक्त होकर लिखते हैं। आपकी 'जैन एकता' नामक पुस्तिका न केवल पुरस्कृत हुई अपितु विद्वानों में समादृत भी हुई । बौद्धिक ईमानदारी एवं सत्यान्वेषण की अनाग्रही शैली आपने पं.सुखलालजी संघवी और पं.दलसुखभाई मालवणिया के लेखन से सीखी । यद्यपि सम्प्रदाय मुक्त होकर सत्यान्वेषण के तथ्यों का प्रकाशन धर्मभीरू और आग्रहशील समाज को सीधा गले नहीं उतरता, किन्तु कौन प्रशंसा करता है और कौन आलोचना, इसकी परवाह किये वगैर आपने सदैव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012014
Book TitleSagarmal Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1998
Total Pages974
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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