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________________ आचार्यप्रवर आभगन्दन २२ आचार्यप्रवर श्री आनन्द ऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व या इस प्रकार आपके तपोपूत जीवन से स्पष्ट परिलक्षित होता है कि आपने तप के मर्म और महत्त्व को पूर्णतया समझ लिया है तथा अपने मन, जिह्वा एवं इन्द्रियों पर नियन्त्रण करके अपने आपको सच्चा साधक बनाया है। तपाराधन करना सहज नहीं है, अनेक जन्मों के संचित पुण्यवाला जितेन्द्रिय पुरुष ही आन्तरिक और बाह्य, दोनों प्रकार के तपों का आराधन कर सकता है और उसकी सच्ची तपसाधना ही उसे मुक्तावस्था की ओर अग्रसर कर सकती है। साहित्य-साधना महामना आचार्य श्री जी ने जीवन को ज्ञानमय आलोक प्रदान करने वाले साहित्य के महत्त्व को भली-भाँति समझ लिया था और इसीलिये उन्होंने अपने जीवन में साहित्य के भंडार को भरने का सर्वदा अथक प्रयत्न किया ।। मैं पहले ही बता चुकी हैं कि आपका अनेक भाषाओं पर पूर्ण अधिकार है। मराठी भापा भी उन भाषाओं में से एक है। आपने अनेक उत्तम ग्रन्थों का मराठी में अनुवाद किया है जो भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से अत्यन्त प्रशंसनीय एवं सफल साबित हुआ है। आपकी अनुवादित पुस्तकों की तालिका इस प्रकार है (१) आत्मोन्नतिचा सरल उपाय । (२) अन्यधर्मापेक्षा जैनधर्मातील विशेषता । (३) वैराग्यशतक । (४) जैनदर्शन आणि जैनधर्म । (५) जैनधर्मा विषयी अजैन विद्वानांचे अभिप्राय (दो भाग)। (६) उपदेश रत्नकोश । (७) जैनधर्माचे अहिंसातत्त्व । (८) अहिंसा आदि । उपरोक्त अनुवादित पुस्तकों के अलावा भी अनेक पुस्तकों का आपने विद्वानों से मराठी में अनुवाद कराया है, जिनका परिशोधन एवं संशोधन आपने स्वयं किया है। अनेक उपयोगी पुस्तकों का अनुवाद कराने के साथ-साथ हिन्दी भाषा में पुस्तकों की रचनाएँ कराने की भी आपकी सदा रुचि रही है। इसके परिणामस्वरूप जो पुस्तकें लिखी गई हैं, उनका क्रम इस प्रकार दिया जा रहा है (१) पूज्यपाद श्री तिलोकऋषि जी महाराज का जीवनचरित्र । (२) पंडितरत्न पूज्यपाद श्री रत्नऋषि जी महाराज का जीवनचरित्र । (३) श्रद्धेय श्री देवजीऋषि जी महाराज का जीवनचरित्र । (४) ज्ञान-कुंजर दीपिका। (५) ऋषिसम्प्रदाय का इतिहास । (६) आध्यात्म दशहरा। (७) समाज स्थिति का दिग्दर्शन । (८) सतीशिरोमणि श्री रामकँवर जी महाराज का जीवनचरित्र । (8) विधवा विवाह आदि मुख चपेटिका। (१०) सम्राट चन्द्रगुप्त राजा के सोलह स्वप्न । (११) चित्रालंकार काव्य : एक विवेचन । इस प्रकार हमारे महामान्य चरितनायक ने अनेक पुस्तकों का समयाभाव होने पर अपनी हादिव HINDI HORI DAAI Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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