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________________ आचार्य श्री आनन्दऋषि जी : अपनी नजर में ११ मावाण UUS ६. अल्पाधिकरण-अल्प अभाव को और अधिकरण क्लेश को कहते हैं। जो व्यक्ति क्लेश मिटाने का सामर्थ्य रखता है, स्नेह, अनुराग और एकता का सजीव प्रतीक होता है तथा जो आपसी वैरविरोध की भीषण अग्नि से जल रहे जनमानस को आपसी प्रेम और ऐक्य का मधुर जल पिलाकर उसके सन्ताप को समाप्त कर देता है, वह आचार्यपद के योग्य होता है। हमारे श्रमणसंघ के ज्योतिर्धर सम्राट श्री आनन्दऋपि जी महाराज प्रेम और सत्य के सजीव प्रतीक हैं। ये क्लेश के वातावरण से सदा दूर रहते हैं, क्लेश को उपशान्त करने के लिए यदि कहीं इन्हें अपनी झोली भी पसारनी पड़े तो भी ये सदा सहर्ष तैयार रहते हैं। इनकी पवित्र अन्तर्वीणा से सर्वदा यही स्वर निकलते रहते हैं--'क्लेश दलदल है, इसमें फंसे व्यक्ति का इससे निकलना मुश्किल होता है। एक दिन उसे अपने जीवन से हाथ धोने पड़ते हैं तथा क्लेश किसी का भला नहीं करता। यह व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के अन्तःस्वास्थ्य को बिगाड़ देता है, अतः इससे बच के रहो।' हमारे आचार्यश्री को श्रमणसंघ के सर्वोच्च अधिकारी होने के नाते बहुत-सी खट्टी-मिट्टी बातें भी सुननी पड़ती हैं, पर शान्ति के पावन स्रोत पूज्य आचार्यश्री पूर्ण शान्ति के साथ सब बातों को सुनते हैं। इनकी शान्तिप्रियता तथा शान्तिप्रधान यह नीति ही आज श्रमण संध के विशाल भवन को सुरक्षित रखे हुए है। अन्यथा विध्वंसप्रिय विद्वेषी लोग इसे कभी का धराशायी कर देते । महान हर्ष का स्थान है कि श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ ने संघाधिपति पूज्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज के सबल कन्धों पर जो दायित्व डाल रखा है, उसे पूर्ण प्रामाणिकता, सात्विकता, उदारता, दीर्घदशिता तथा संलग्नता से निभाने का सत्प्रयास कर रहे हैं। हृदयसम्राट पूज्य श्री जी महाराज की यह संघसेवा श्रमण संघ के इतिहास में सदा अभिवन्दनीय तथा चिरसंस्मरणीय रहेगी। अनागत काल की पीढ़ियाँ इनकी इस श्रमणसंधीय सेवा के उपलक्ष्य में उन्हें सदा अपनी-अपनी श्रद्धांजलियां समर्पित करती रहेंगी। साधना के अमर प्रतीक, महाराष्ट्रकेसरी, आचार्यसम्राट, पूज्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज के ७५वें जन्मदिवस पर उन्हें अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पित करने का जो आयोजन हो रहा है, मैं इसका हृदय से स्वागत करता हूँ। जिन महापुरुप ने जीवनगत अपनी समूची शक्तियाँ समाजोत्थान और समाज-निर्माण के लिए निछावर कर दी हों, उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना, उनके परिपूत चरणों में श्रद्धासुमन समर्पित करना हम सब सामाजिक व्यक्तियों का कर्तव्य बन जाता है । आज इस कर्तव्य की पूर्ति होने जा रही है--यह जानकर हमें हार्दिक हर्ष हो रहा है। इस आयोजन के संयोजकों को उनकी इस मुझबुझ के लिए शतशः धन्यवाद । आचार्यप्रवर पूज्य श्री आनन्द ऋषि जी महाराज के ७५वे वर्ष-दिवस पर "नमो आयरियाणं" इस मंगलमय पद का उच्चारण करता हुआ मैं उनके परम पावन चरण-कमलों में अपने श्रद्धासुमन समर्पित करता है। साथ में शासनेश भगवान महावीर का स्मरण करता हुआ हार्दिक भावना करता हूँ "आचार्य देव ! आप दीर्घजीवी हों, आपका मंगलमय वरदहस्त सदा हमारे सिर पर टिका रहे। ज्ञान, दर्शन, चारित्र की पावन ज्योति से चतुर्विध संघ को ज्योतिर्मान बनाते हुए आप मानव जाति का कल्याण करने में सफल हों।" क THE जय NIयाज RNO andu HSS43 म : . . . . . . . " 6 www.jalilendrary.org Jain Education International POT private Personal use only
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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