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________________ अभिनन्द आआनंदाही आमदनी आमा भ २२४ इतिहास और संस्कृति की रचना की है जिनमें से अनेक ग्रन्थ श्री अमोल जैन ज्ञानालय धूलिया से प्रकाशित भी हो चुके हैं । कुंजर आपकी बड़ी ही सुन्दर रचना है । मालवा, मेवाड़, मारवाड़, गुजरात, महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में विहार कर जिन शासन का उद्योत किया है । सं० १९८२ में आप महाराष्ट्र में पधारे और ऋषि सम्प्रदाय के संगठन के लिए बहुत प्रयत्न किया । आपने ४५ वर्ष तक संयम पाला, सं० १९८८ वैशाख शुक्ला १४ को आप शुजालपुर ( मालवा ) में कालधर्म को प्राप्त हुए । मालवा प्रान्त में आप द्वारा अनेक भागवती दीक्षाएँ सम्पन्न हुई । CO 疏 पूज्य श्री देवऋषिजी म० आपके पिताश्री का नाम श्री जेठाजी सिंघवी और माता का नाम श्रीमती मीराबाई था । ग्यारह वर्ष की उम्र में मातुश्री का अवसर पर ऋषि सम्प्रदाय की सं० १९२६ दीपमालिका के पुण्य दिवस पर आपका जन्म हुआ था । वियोग हो गया। सूरत में आपकी भागवती दीक्षा सम्पन्न हुई । इसी खम्भात शाखा के सन्त सतियों का सम्मेलन भी हुआ । २३ वर्षों में १ से लेकर ४१ आप महान तपस्वी थे । सं० १६५८ से लेकर सं० १९८१ तक दिन की कड़ीबन्द और प्रकीर्णक तपस्यायें कीं । आपका विहार भारत के सभी प्रान्तों में हुआ । विशेषकर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में विहार कर आपने जैन धर्म की प्रभावना की । सं० १९८६ में ऋषि सम्प्रदाय के संगठन और आचार्य पदवी महोत्सव के निमित्त आप इन्दौर पधारे। आपके वरदहस्त से आगमोद्धारक पं० २० मुनि श्री अमोलक ऋषिजी म० को आचार्य पद की चादर ओढ़ाई गई । सं० १९६३ में आपका चातुर्मास नागपुर में था । इसी बीच धूलिया में पूज्य श्री अमोलक ऋषिजी म० सा० का देवलोक हो गया था । सं० १९९३ माघ कृष्णा ५ को आपको भुसावल में पूज्य पदवी की चादर ओढ़ाई गई । आप काफी वृद्ध थे अतः आपने उसी समय स्पष्ट कर दिया कि मैं इस गुरुतर भार को वहन करने में असमर्थ हूँ अतः सम्प्रदाय के संचालन का उत्तरदायित्व पं० २० श्री आनन्द ऋषिजी म० को सौपा जाता है और उन्हें युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया जाता है । सं० १६६६ का चातुर्मास करने आप नागपुर इतवारी पधारे। शरीर काफी वृद्ध हो गया था लेकिन स्वास्थ्य साधारणतया ठीक ही था । अकस्मात लकवे की शिकायत हो गई जो आयुर्वेदिक चिकित्सा से कुछ ठीक हो गई । इसी समय इतवारी में साम्प्रदायिक दंगा हो जाने से श्रावकों की विनती पर आप सदर बाजार पधार गये । चातुर्मास काल में तबियत नरम ही रही । मगसिर कृष्णा ४ को आपको घबराहट काफी बढ़ गई। सभी सन्त सतियों एवं युवाचार्य श्री आनन्द ऋषिजी म० को सम्प्रदाय की व्यवस्था सम्बन्धी समाचार श्रावकों के माध्यम से भिजवा दिये । मगसिर कृष्णा ७ को तबियत में और अधिक बिगाड़ आ गया। दूसरे दिन आपने उपवास किया और नवमी को संलेखना सहित चौ विहार प्रत्याख्यान कर लिया । नवमी की रात्रि को आपने इस नश्वर शरीर का परित्याग कर दिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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