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________________ ग्रन्थों की सुरक्षा में राजस्थान के जैनों का योगदान १६३ कवि का प्रद्युम्नचरित (सम्वत् १४११ ) की दुर्लभ पाण्डुलिपियाँ भी जयपुर के जैन शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत हैं । ये दोनों ही कृतियाँ हिन्दी के आदिकाल को कृतियाँ हैं, जिनके आधार पर हिन्दी साहित्य के इतिहास की कितनी ही विलुप्त कड़ियों का पता लगाया जा सकता है। कबीर एवं गोरखनाथ के अनुयायियों की रचनायें भी इन भण्डारों में संग्रहीत हैं, जिनके गहन अध्ययन एवं मनन की आवश्यकता है । मधुमालती कथा, सिंहासन बत्तीसी, माधवानल प्रबन्ध कथा की प्राचीनतम पाण्डुलिपियाँ भी राजस्थान के इन भण्डारों में संग्रहीत हैं । वास्तव में देखा जावे तो राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों ने जितने हिन्दी एवं राजस्थानी ग्रन्थों को सुरक्षित रखा उतने ग्रन्थों को अन्य कोई भी भण्डार नहीं रख सके हैं। जैन कवियों की सैकड़ों गद्य पद्य रचनायें इनमें उपलब्ध होती हैं जो काव्य, चरित, कथा, रास, बेलि, फागु, ढमाल, चौपई, दोहा, बारहखड़ी, विलास, गीत, सतसई, पच्चीसी, बत्तीसी, सतावीसी, पंचाशिका, शतक के नाम से उपलब्ध होती हैं । १३वीं शताब्दि से लेकर १६वीं शताब्दि तक निबद्ध कृतियों का इन भण्डारों में अम्बार लगा हुआ है, जिनका अभी तक प्रकाशित होना तो दूर रहा वे पूरे प्रकाश में भी नहीं आ सके हैं । अकेले 'ब्रह्म जिनदास' ने पचास से भी अधिक रचनायें लिखी हैं जिनके सम्बन्ध में विद्वत् जगत अभी तक अन्धकार में ही है । अभी हाल में ही महाकवि दौलतराम की दो महत्वपूर्ण रचनाओं - जीवन्धर स्वामी चरित एव विवेक विलास का प्रकाशन हुआ है । कवि ने १८ रचनायें लिखी हैं और वे एक-से-एक उच्चकोटि की हैं । दौलतराम १८वीं शताब्दि के कवि थे और कुछ समय उदयपुर भी महाराणा जगतसिंह के दरबार में रह चुके थे ।' पाण्डुलिपियों के अतिरिक्त इन जैन भण्डारों में कलात्मक एवं सचित्र कृतियों की भी सुरक्षा हुई है । कल्पसूत्र की कितनी ही सचित्र पाण्डुलिपियां कला की उत्कृष्ट कृतियाँ स्वीकार की गयी हैं । कल्पसूत्र कालकाचार्य की एक ऐसी ही प्रति जैसलमेर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है । कला प्रेमियों ने इसे १५वीं शताब्दि की स्वीकार की है । आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर में एक आदिनाथ पुराण की सम्वत १४६१ (सन् १४०४ ) की पाण्डुलिपि है । इसमें १६ स्वप्नों का जो चित्र है वह कला की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है । इसी तरह राजस्थान के अन्य भण्डारों में आदिपुराण, जसहरचरिउ, यशोधर चरित, भक्तामर स्तोत्र णमोकार महात्म्य कथा की जो सचित्र पाण्डुलिपियाँ हैं वे चित्र कला की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। ऐसी कृतियों का संरक्षण एवं लेखन दोनों ही भारतीय चित्रकला के लिए गौरव की बात है । १. देखिये - दौलतराम कासलीवाल — व्यक्तित्व एवं कृतित्व - डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल । २. जैन ग्रंथ भण्डार्स इन राजस्थान - डा० के० सी० कासलीवाल । आचार्य प्रव Jain Education International आचार्य प्रवर One excitaver अति अन For Private & Personal Use Only So www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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