SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 703
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ nainamaAMJALABAJRIWANATASATANAMANABARABANARANANJABANNADABADAAN N NAINALANADAIANARAIADABANANASANBARABANKA A MASALALARAJADAM 1523ाम आचा प्रवास श्रीआनन्द ग्रन्थ meRA १८८ इतिहास और संस्कृति और इसी कारण साहित्य संग्रह के अतिरिक्त राजस्थान जैन पुरातत्त्व एवं कला की दृष्टि से उल्लेखनीय प्रदेश रहा ।। ग्रंथों की सुरक्षा एवं संग्रह की दृष्टि से राजस्थान के जैनाचार्यों, साधुओं, यतियों एवं श्रावकों का प्रयास विशेष उल्लेखनीय है । प्राचीन ग्रंथों की सुरक्षा एवं नये ग्रंथों के संग्रह में जितना ध्यान जैन समाज ने दिया उतना अन्य समाज नहीं दे सका । ग्रंथों की सुरक्षा में उन्होंने अपना पूर्ण जीवन लगा दिया और किसी भी विपत्ति अथवा संकट के समय ग्रथों की सुरक्षा को प्रमुख स्थान दिया । जैसलमेर, जयपुर, नागौर, बीकानेर, उदयपुर एवं अजमेर में जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ भण्डार हैं वे सारे देश में अद्वितीय हैं तथा जिनमें प्राचीनतम पाण्डुलिपियों का संग्रह है। इन शास्त्र भण्डारों में ताड़पत्र एवं कागज पर लिखी हुई प्राचीनतम पाण्डुलिपियों का संग्रह मिलता है । संस्कृत भाषा के काव्य चरित, नाटक, पुराण, कथा एवं अन्य विषयों के ग्रंथ ही इन भण्डारों में संग्रहीत नहीं हैं किन्तु प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषा के अधिकांश ग्रंथ एवं हिन्दी राजस्थानी का विशाल साहित्य इन्हीं भण्डारों में उपलब्ध होता है। यही नहीं कुछ ग्रंथ तो ऐसे हैं जो इन्हीं भण्डारों में उपलब्ध होते हैं, अन्यत्र नहीं। ग्रंथ भण्डारों में बड़े-बड़े पण्डित लिपिकर्ता होते थे जो प्रायः ग्रंथों को प्रतिलिपियाँ किया करते थे। जैन महारवों के मुख्यालयों पर ग्रथ लेखन का कार्य अधिक होता था। आमेर, नागौर, अजमेर, सागवाडा, जयपर, कामा आदि के नाम विशेष रूप में उल्लेखनीय हैं। ग्रंथ लिखने में काफी परिश्रम करना पड़ता था। पीठ भुके हुए कमर एवं गर्दन नीचे किये हुए, आँखें झुकाये हुए कष्ट पूर्वक ग्रन्थों को लिखना पड़ता था। इसलिए कभी-कभी प्रतिलिपिकार निम्न श्लोक लिख दिया करते थे जिसमें पाठक, ग्रंथ की स्वाध्याय करते समय अत्यधिक सावधानी रखे "भग्न पृष्ठि कटि ग्रीवा वक्रवृष्टिरधोमुखम् । कष्टेनलिखितं शास्त्रं यत्नेन परिपाल्यताम् ॥" बद्ध मुष्टि कटि ग्रीवा मददृष्टिरधोमुखम् । कष्टेनलिखितं शास्त्र यत्नेन परिघातयेत ॥ लघु दीर्घ पद हीण वंजण हीण लखाणुहुई । अजाण पणई मूढ पणह पंडत हई ते करि भणज्यो । राजस्थान के जैन शास्त्रभण्डार प्राचीनतम पाण्डुलिपियों के लिए प्रमुख केन्द्र हैं । जैसलमेर के जैन शास्त्रभण्डार में सभी ग्रन्थ ताड़पत्र पर हैं जिसमें सम्बत् १११७ में लिखा हुआ ओघ नियुक्ति वृत्ति सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ है। इसी भण्डार में उद्योतन सूरि की कृति कुवलयमाला सन् १०८२ की कृति है। राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में यद्यपि ताड़पत्र एव कागज पर ही लिखे हुए ग्रन्थ मिलते हैं लेकिन कपड़े एवं ताम्रपत्र पर लिखे हुए ग्रन्थ भी मिलते हैं । जयपुर के एक शास्त्र भण्डार में कपड़े पर १. सम्वत् १११७ मंगलं महाश्री ॥ छ । पाहिलेन लिखित मंगलं महाश्री ॥ छ । २. सम्वत् ११३६ फाल्गुन वदि १ रवि दिने लिखितमिद पुस्तकमिति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy